Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 18
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

View full book text
Previous | Next

Page 325
________________ आपणी अम्हे पूजाओ, वयं पूज्यामहे स्वयम् / पचाणु आपणी कूर, अपाचि स्वयमोदनः // 12 // मंडाइ आपणी कन्या, कन्याऽलङ्कुरुते स्वयम् / रचाइ आपणी ग्रन्थु, ग्रन्थोयं ग्रथ्यते स्वयम् // 13 // यत्र स्वस्य प्रसिद्धस्य, क्रियया ज्ञाप्यते क्रिया। . . परेषामप्रसिद्धानां, सोक्तिः स्याद्भावलक्षणा // 14 // . कर्तरि कर्मणि भावे, त्रिविधं तद्भावलक्षणं तत्र / साप्यानाप्यकधातु,-प्रयोगतः कर्तरि द्विविधम् // 15 // अमुकई अमुकउं करतइ, अमुकइ होइतइति प्रयोगि यथा / .. सूर्येऽभ्युदयं गच्छति, कजेषु विकसत्सु रात्रिरगात् // 16 // याते शत्रुञ्जयं तीर्थं, नतवत्यादिमं जिनम् / प्रणेमुषि गुरून् भक्त्या, चक्राणे विनयंक्रियाम् // 17 // कुर्वति प्राणिषु कृपां, तन्वाने शासनोन्नतिम् / पात्राय दायके श्रीणां, शीलरत्नस्य धर्तरि // 18 // शुश्रूषते च सिद्धान्तं, जिघांसावान्तरानरीन् / ' प्राप्तुकामे परानन्दं, त्वयि मित्र ! मुदो मम // 19 // अमुकई इसितइं करितइं होइतइं, कर्मभावयोश्च यथा / रविणा क्रियमाणेऽहन्यु,-दीयमाने च याति तमः // 20 // मया गृहीते चारित्रे, क्रियमाणे तपोभरे / जिनागमे च पेठाने, मित्र ! ते मोदते मनः // 21 // नृत्ते सुरीभिर्गन्धर्व,-र्गीयमाने श्रवःसुखम् / जिनेनासनि तस्थाने, प्रमोदः पर्षदो भवेत् // 22 // सर्वस्मिन् कारकेऽनुक्ते, यथार्ह सूत्रभाषिताः। विभक्तयो द्वितीयाद्या, उक्ते तु प्रथमा भवेत् // 23 // 395

Loading...

Page Navigation
1 ... 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346