Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 18
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 1 // // 2 // // 4 // पण्डितप्रकाण्ड-उदयधर्मगणिविरचितः // वाक्यप्रकाशः // प्रणम्यात्मविदं विद्या,-गुरुं श्रीदेववर्धनम् / मुग्धबुद्धिप्रबोधार्थ,-मुक्तियुक्तिः प्रतन्यते द्विधोक्तिः प्रध्वरा वक्रा, प्रध्वरा कर्तरि स्मृता / वक्रा कर्मणि भावे च, धातोः साप्यादनाप्यतः कर्तरि प्रथमा तत्र, प्रध्वरोक्तौ क्रिया पुनः / कर्बपेक्षार्थवचना, धात्वपेक्षपदद्वया कर्मोक्तौ प्रथमा कर्म-ण्युक्तत्वात् प्रत्ययादिभिः / तृतीया कर्तरीत्यादि-प्रत्ययाद्यं तु कर्मजम् कालेऽतीते प्राकृतोक्तौ, न भेदः कर्तृकर्मणोः / . यथा जिनोऽवदद्धर्म, धर्मोऽवादि जिनेन वा तृतीयान्तो भवेत्कर्ता, भावोक्तौ कर्म नो भवेत् / अन्यार्थस्याऽऽद्यवचनं, क्रियायामात्मनेपदम् सुकृतं सुखानि सूते, ददाति दुःखानि मेदुरं दुरितम् / पाल्यन्ते पुण्यवता, पीड्यन्ते. प्राणिनः पापैः . तैः स्थीयते सुखं यैर्न, भूयते ग्रेगरोषरतचित्तैः / उक्तिप्रयोग एवं, क्रमेण काप्यभावेषु . यत्र कमैव कर्तृत्वं, याति कर्ता तु नोच्यते / जिक्यात्मनेपदं धातो,-युक्तिः सा कर्मकर्तरि सुखि भगाइ ए ग्रन्थु ग्रन्थोऽयं भण्यते सुखम् / आपणी कणवीकाई, विक्रीयन्ते कणाः स्वयम् भगवन् तुम्हे वंदाओ, आपणी आपणे गुणे / भगवन्तः स्वयं यूयं, वन्दध्वे निजकैर्गुणैः 315 // 7 // // 8 // मत / // 9 // // 10 // // 11 //
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