Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 18
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 329
________________ धातोरर्थान्तरे वृत्ते,-र्धात्वर्थेनोपसंग्रहात् / . प्रसिद्धरविवक्षातः, कर्मणोऽकर्मिका क्रिया / // 60 // धातोरर्थपरावर्तोऽप्युपसर्गात् क्वचिद्भवेत् / विहाराहारनीहार,-प्रतीहारप्रहारवत् // 61 // नीहवहिकृषोण्यन्ता दुहि ब्रूप्रच्छिभिक्षिचिरुधिशास्वर्थाः / पचि-याचि-दण्डि क-ग्रहमथि-जिप्रमुखा द्विकर्माणः // 62 // उभयोः कर्मणोादे 'प्रधानेतरतो यथा / . आरभ्यते क्रिया यस्म तद्दुग्धाद्यं प्रधानकम् // 63 // तत्सिद्ध्यै क्रियया यत्तु, व्याप्यतेऽन्यद् गवादिकम् / तदप्रधानं गौणाख्यं, गोपालो दोग्धि गां पयः // 64 // यदा पयोऽर्था कादेः, प्रवृत्तिरविवक्षिता / तदा मुख्यासन्निधानाद्, गवादेरेव मुख्यंता // 65 // गौणं कर्म दुहादीनां, प्रत्ययो वक्ति कर्मजः / गौः पयो दुह्यतेऽनेन, शिष्योऽर्थं गुरुणोच्यते ... // 66 // न्यादीनां कर्मणो मुख्यं, स्वोक्तत्वं प्रत्ययाद् यथा / नीयते गौद्विजैामं, भारो ग्राममथोडते // 6 // गत्यर्थाकर्मका ण्यन्ता, कर्तृकर्मोक्तताजुषः / चैत्रेण गम्यते मैत्रो, ग्रामं मासमथास्यते / // 68 // बोधाहारार्थशब्दाप्य,-धातौ ण्यन्ते द्वयोक्तता / यथाऽर्थं बोध्यते शिष्यो, गुरुणाऽर्थोऽथ शिष्यकम् // 69 // ओदनं भोज्यते पुत्रो, मात्रा पुत्रमथौदनः / पाठ्यते गुरुणा ग्रन्थं, शिष्यो ग्रन्थोऽथ शिष्यकम् // 70 // कर्मादीनां त्यादिनेवोक्तता कृत्यादिभिर्यथा / गम्या मैत्रेण गौामं, गम्यो ग्रामोऽथ तेन गाम् . // 71 // 320

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