Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 04
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 12
________________ // 24 // // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // // 29 // पच्चक्खाणविहाणं जाणंतो थूलपावओ विरओ। आणासुद्धे जोगे वतो देसचारित्ती णाऊण परिहरंतो सव्वं सावज्जजोगमुज्जुत्तो। पंचसमिओ तिगुत्तो सव्वचरित्ती महासत्तो एएसि दव्वाणा भावाणाजणणजोग्गयाए उ। थोवा वि हु जं सुद्धा बीआहाणेण पुण्णफला जइ वि हु आयसभावे भावे परिणामिकारणं भावो / बीआहाणविसुद्धा तह वि णिमित्तं खु दव्वाणा बीआहाणं इहइं भावाणाए उ होइ बहुमाणो / तक्कारणे वि अत्था जं दव्वथओ वि सदणुमओ एयं च णेयमेवं विसए अणिसेहओ जिणिंदस्स। चेइअपूअणवत्तियकाउस्सगा य साहूणं ण य आरंभाणुमई एत्थं भावस्स चेव बहुमाणा। खलिअचरणाइमुत्तय बहुमाणे सा भवे इहरा सोमिलदाहाणुमई अवि जिणवरणेमिणा कया होइ / गयसुकुमालमसाणट्ठाणं अणुमण्णमाणेण ण य धम्मट्ठा हिंसा एसो सावज्जओ सरूवेण। अण्णह पुट्ठालंबण णइउत्ताराइ विहडिज्जा जुत्तो य इमो भणिओ विरयाविरयाण कूवणाएण। समयम्मि अण्णहा पुण निवडिज्जा अत्थदंडम्मि चेइयवेयावच्चं जं सुअमुवयारिओ अ जो विणओ। सो दव्वत्थओ णियमा तेण जई तमणुमण्णंति सक्खाउ संजयाणं भावपहाणत्तओ ण सो जुत्तो। भावो अ तयणुमोअणमेत्तो तं चेव जुत्तयरं // 30 // // 31 // // 32 // // 33 // // 34 // // 35 //

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