Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 04
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // // 16 // // 17 // पावं विवज्जयंतो कामेसु तहा असज्जमाणो य। णागीयो अन्नाणी किं काही च्चाइवयणाओ अण्णह विरुज्झए किर गीअण्णविहारवंज्जणप्पमुहं। गीअम्मि वि उचियमिणं तयण्णलाभंतरायम्मि सुत्तं अत्थणिबद्धं छायाछायावओ जह णिबद्धा / तेणं केवलसुत्ते अणुरत्तो होइ पडिणीओ जो सीलवं असुअवं सो देसाराहगो कहं एवं / जन्नाणेऽणुट्ठाणं पुण्णं इहरा य णो देसो . ' भन्नइ दव्वाराहणमेयं सुत्तं पडुच्च दट्ठव्वं / . सो पुण दव्वपयत्थो दुविहो इह सुत्तणीईए एगो अप्पाहन्ने अण्णो पुण होइ भावजोग्गत्ते / पढमो गंठिगयाणं बितिओऽपुणबंधगाइणं गंठिगया सइबंधग मग्गाभिमुहा य मग्गपडिआ य / तह अभविआ य तेसिं पूआदत्थेण दव्वाणा लिंगाइं होंति तीसे ण तदत्थालोअणं न गुणरागो। नापत्तपुव्वहरिसो विहिभंगे णो भवभयं च एए ख अणुवओगा एत्तो च्चिय हंदि अप्पहाणत्तं / जमणुवओगभवाओणंताओ हुंति किरियाओ पाहण्णं वि य इत्थं कुग्गहविरहाउ गुरुनिओगेणं / तह वि हु मुक्खफलं पइ अप्पाहण्णं वि अविरुद्धं सो अपुणबंधगो जो णो पावं कुणइ तिव्वभावेणं / बहुमण्णइ णेव भवं सेवइ सव्वत्थ उचियठिई सुस्सूसइ अणुरज्जइ धम्मे णियमेण कुणइ जहसत्ति। गुरुदेवाणं भत्तिं सम्मद्दिट्टी इमो भणिओ - // 18 // // 19 // // 20 // // 21 // // 22 // // 23 //

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