Book Title: Shantipath Pradarshan
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

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Page 342
________________ ३११ आदर्श सल्लेखना सल्लेखना का सूत्रपात को जल का भी त्याग कर दिया। २४ मई को समस्त संघ के आहार के पश्चात् पूर्ण जागृत अवस्था में, आचार्य श्री द्वारा णमोकार मन्त्र का श्रवण करते हुए, वस्त्र मात्र का त्याग करके वैशाख शुक्ला त्रयोदशी मंगलवार को प्रात: ११ बजे मंगल पद का परित्याग कर मंगल लोक को प्रस्थान कर गए। चेतना के चले जाने पर भी शरीर ऐसा प्रतीत होता था मानो अर्धनिमीलित नेत्रों से पद्मासन लगाए ध्यानस्थ मुद्रा में विराजमान हों। त्याग, तपस्या व समता की मूर्ति के दर्शन कर जन-जन का हृदय गद्-गद् हो रहा था परन्तु नेत्र अश्रुपूर्ण थे। ईशरी बाजार में विमान यात्रा निकालने के पश्चात् श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी की समाधि के निकट ही देवदार व चन्दन की लकड़ियों पर विराजमान कर गोले, नारियल, घी व कपूर के ढेर के बीच णमोकार मंत्र का उच्चारण करते हुए अग्नि संस्कार कर दिया गया। सांयकाल ४ बजे श्रद्धाञ्जलि सभा हुई। अगले दिन भस्मोत्थान क्रिया हुई। आचार्य श्री सहित समस्त मुनि संघ का उपवास था दोपहर को आचार्य श्री ने प्रवचन में कहा—“आचार्य श्री शान्ति सागर जी के बाद ऐसी सल्लेखना हुई है । जो विरले ही होती है । मुझे विश्वास है कि वे दो तीन भव में अवश्य ही मोक्ष को प्राप्त करेंगे। मेरी भावना है कि मेरी भी ऐसी ही सल्लेखना हो।" इस प्रकार एक अद्भुत योगी निजदर्शन से, पदस्पर्शन से वचश्रवणन से जन-जन को कृतार्थ कर देह को छोड़ कर अमरता की ओर अग्रसर हो गए। यह थी उनकी आदर्श सल्लेखना, समाधि, मुत्यु पर विजय । यह जन-जन के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत है। बाल ब्र० डॉ० मनोरमा जैन, रोहतक SONar श्री जिनेन्द्रवर्णी जी भगवद प्रतिमा का चरण स्पर्श करते हुए (शान्तिनिकेतन ईशरी) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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