Book Title: Shantinath Charitram
Author(s): Kanchanvijay
Publisher: Kanchanvijay

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Page 15
________________ RANCalentinkedioactAcaded गोपयित्वातियत्नेन प्रभातसमयेऽमना। अपितोऽमात्यवर्यस्य गहे नीला सगौरवम ॥१३० भोजनाच्छादनप्रायममात्योऽप्यस्य गौरवम् । चकार सदनस्यान्तर्गोपनं च दिवानिशम् ॥१३१॥ ततोऽसौ चिन्तयामास किमयं मम सक्रियाम् । कुरुते निर्गमं चैव यत्नाद्रक्षति मन्दिरात् ॥१३२॥ पप्रच्छ चान्यदाऽमात्यं तात ! वैदेशिकस्य मे । किमिदंमाननं हन्त भवद्भिः क्रियतेऽधिकम् ।। १३३ ।। कानामैषा पुरी को वादेशः को वान भूपतिः। इति सत्यं ममाख्याहि विस्मयोऽत्र प्रवर्तते ॥ १३४ ॥ अमात्योऽप्यववीच्चम्पानाम्नीय नगरी वरा । अङ्गाभिधानो देशश्च राजान सुरसुन्दरः ॥१३५॥ सुबुद्धिर्नाम तस्याहं माननीयो महत्तमः । मयाऽनीतोऽसि वत्स! त्वं कारणेन गरीयसा ॥ १३६ ॥ त्रैलोक्यसुन्दरी नाम राज्ञा पुत्री विवाहितुम् । प्रदत्ता मम पुत्राय स तु कुष्ठेन पीडितः ॥१३७॥ परिणीय त्वया भद्र ! विधिना सा नृपाङ्गजा । दातव्या मम पुत्राय तदर्थ त्वामिहानयम् ॥ १३८॥ तच्छ्रुत्वा मङ्गलोवोचदकृत्यं किं करोष्यदः । व सा रूपवती बाला निन्धरोगी क ते सुतः॥ १३९ ।। कर्मेदं न करिष्यामि कथञ्चिदतिनिष्ठुरम् । कूपे क्षिप्त्वा जनं मुग्ध वरत्राकर्तनोपमम् ॥१४०॥ मन्त्र्यूचे चेन कर्मेदं करिष्यसि सुदुर्मते!। तदा त्वां निजहस्तेन मारयिष्यामि निश्चितम् ॥ १४१ ॥ इति निस्त्रिंशमाकृष्य भणितोऽपि सुबुद्धिना । अकृत्यं नानुमेने तत् स कुलीनशिरोमणिः ॥१४२॥ १ बहिर्गमनं. २ खड्गम् WEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE

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