Book Title: Shantidas Virachit Gautamswami Ras Chaupai Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ [52] आ रचनानी एकमात्र प्रतिनी झेरोक्स नकल मारी पासे मौजूद छे, जे प्रति डभोईना श्रीरंगविजय-शास्त्रसंग्रह-भंडारनी छे. बे पत्रो धरावती आ हस्तप्रति, तेनी लखावट जोतां १९मा शतकमां लखाई होय तेवू अनुमान थाय छे. आ रचनानी बीजी प्रति हजी सुधी तो क्यांय जोवामां नथी आवी. कोई सुज्ञ जनना ध्यानमां आनी प्रति होय अथवा आ रचना तथा तेना कर्ता विशे विशेष काई ज्ञातव्य होय तो तेओ ते विशे माहिती मोकले तेवी विनंति. ३ श्री शांतिदास-विरचित श्री गौतमस्वामी-रास (चौपाई) ॥ सरस वचनदायक सरसती, अमृत-वचन मुखथी वरसती । सहिगुरु केलं कीजें ध्यांन, अलवें आलें बुद्धिनिधान ।। तीर्थंकर चोवीसे तणा, एकमनां गुण गाउं घणा ।। वीहरमांन जिन वंदुं वीस, सीद्ध अनंता नामुं सीस ॥ सुमत गुपत पालें मन सुद्ध, नमुं साधुं जस नीर्मल बुद्ध मुझ मत सारूं करूं अभ्यास, कहस्युं गौतमस्वामीनो रास ॥ जंबुद्वीप अनो(पम) भगुं, भरतखेत्र ते मांहि सुj मगधदेस वसें अभीरांम, इंद्रपूरी सम गोबरगांम ।। गढ मढ मंदिर पोल प्राकार, वावि सरोवर नाती विस्तार लखेसरी कोटीसर घणा, दानेसरी ती नहं तीहां मणा ॥ घणा विप्रतणो तिहां वास, वेद पूराणनो करई अभ्यास सघलामांहि वडो अधीकार, वसुभुति विप्र धर प्रथवी नारिं ॥ अर्धनिसा पोढि जेतलई, इंद्रभुवन दिर्छ तेतलई । जागि मनस्युं करई विचार, आवि जिहां , निज भरतार ।. स्वामि सुपन लयूं मि इस्यूं, तेहतणुं फल कहो मुझ किस्यु वसुभुत विप्र विचारि कहई, प्रथविदेवि ते सद्दहई ।। तुम कुखहुं सुत होस् सार, च्यार वेदतणो भणनार जैन धर्म तै दीपावस्यें, त्रिभुवन पूजनीक ते थस्यें ।। ६ ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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