Book Title: Sazzay Sagar Part 03
Author(s): Nagindas Kevaldas Shah
Publisher: Sushilaben Shah

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Page 2
________________ * नसा२; मनन-थितन * १. क्यों व्यर्थ चिंता करते हो ? २. किससे व्यर्थ डरते हो ? ३. कौन तुम्हें मार सकता है ? . . मात्मा न तो पैदा हुई है, न तो पैदा होती है, न तो मरती है ५. आत्मा अजर अमर है। ६ जो हुआ सो अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह भी अच्छा ही है जो होगा सो अच्छा ही होगा ७. तुम वीते हुए की चिंता मत करो, भविष्य का भय छोड़ दो वर्तमान समय जो वीत रहा है उसीको सफल करो ८. तुम्हाग क्या गया जो तुम रोते हो? ९. तुम क्या लाये थे जो खो दिया ? १०. तुमने जो पैदा किया था वो यहाँ ही से लिया था जो दिया, यहीं पर दिया खाली हाथ आये थे और खाली हाथ जाओगे जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, जो कल तुम्हारा था, आज किसी और का है, कल किसी और का होगा, परसों किसी और का ही होगा! तुम उसको अपना समझ कर प्रसन्न होते हो, किंतु यही समझ तुम्हें कालांतरे अप्रसन्न-दुःखी करती है १२. परिवर्तन या तबदीली को समझो, यह नया जीवन है एक मिनीट में तुम करोड़ों के स्वामी और दूसरी एक क्षण में तुम निर्धन और असहाय बन जाते हो। १३. मेरा-तेरा, अपना-पराया; यह भेदभाव मिटा दो, अनादिकाल की लंबी मंजिल के हिसाब से जगत में कोई पराया नहीं है यह मानना ही विभ्रम है, अज्ञान (दुःख) की जड़ है। १४. दूसरी बात-शरीर को छोड़कर आत्मा पुनर्जन्म लेता है । इसी बात से समझो कि-देह और आत्मा दोनों भिन्न भिन्न है। देहरुपी धर्मशाला में आत्मारुपी प्रवासी ठहरा हुआ है, निश्चित समये दोनों विखूटे पड़ने वाले है, फिर कोई किसीका नहीं रहता।

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