Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम
(०६)
प्रत
सूत्रांक
[२,३]
दीप
अनुक्रम
[२,३]
[भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा " - अंगसूत्र - ६ ( मूलं + वृत्तिः)
श्रुतस्कन्ध: [१]
----------- अध्ययनं [-],
मूलं [२३]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र [०६] अंगसूत्र-[०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्तिः
Ea
च दर्दरेण चहलेन चपेटाकारेण वा दत्ताः पंचाङ्गुलास्तला - हस्तकाः यत्र तत्तथा, 'उबचियचंदणकलसे' उपचिता- निवेशिताः चन्दनकलशा - मङ्गल्यघटा यत्र तत्तथा, 'चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागे' चन्दनघटा सुष्ठु कृतास्तोरणानि च द्वारदेशभार्ग प्रति यसिंस्तच्चन्दन घटसुकृततोरणप्रतिद्वारदेशभागं, देशभागाश्व देशा एव, 'आसत्तोससविपुलवद्वबग्घारियमल्लदामकलावे' आसक्तो भूमौ संबद्धः उत्सक्त उपरि संबद्धः विपुलो- विस्तीर्णः वृसो-वर्तुलः 'बग्घारिय'सि प्रलम्बमानः माल्यदामकलापः - पुष्पमालासमूहो यत्र तत्तथेति 'पंचवण्णसुरभिमुकपुप्फपुञ्जवयारकलिए' पंचवर्णेन सुरभिणा मुक्तेनक्षिप्तेन पुष्पपुञ्जलक्षणेनोपचारेण पूजया कलितं यत्तत्तथा 'कालागरुपवरकुंदुरुक्कतु रुकधूव मघमघंतगंधुद्धयाभिरामे' कालागरुप्रभृतीनां धूपानां यो मघमघायमानो गन्ध उद्भूत उद्भूतस्तेनाभिरामं यत्तत्तथा तत्र कुंदुरु-चीडा तुरुकं सिल्हकं 'सुगं| ववरगंधगंधिए सद्गन्धा ये वरगन्धा - वासास्तेषां गन्धो यत्रास्ति तत्तथा 'गंधवट्टिभूए' सौरभ्यातिशयात् गन्धद्रव्यगुटिकाकल्पमित्यर्थः 'नडनकजल्ल मल्लमुट्ठिय वेलंब गपवककहकलासक आइक्खयलंखमख तूण इल्लववीणिय भुयगमागहपरिगए' पूर्वबन्नवरं भुजगा-भोगिन इत्यर्थः भोजका वा तदचका मागधा - मट्टा: 'बहुजणजाणवयस्स विस्सुयकित्तिए' बहो र्जनस्य पौरस्य जानपदस्य च - जनपदभवलोकस्य विश्रुतकीर्त्तिकं प्रतीतख्यातिकं, 'बहुजणस्स आहुस्स आहुणिज्जे आहोतुःदातुः आहवनीयं- संप्रदानभूतं 'पाहुणिज्जे' प्रकर्षेण आहवनीयमिति गमनिका 'अच्चणिज्जे' चन्दनगन्धादिभिः 'वंदणिले' सुतिभिः 'प्रय णिज्जे' पुष्पैः 'सकारणिज्जे' वस्त्रेः 'सम्माणणिज्बे' बहुमानविषयतया 'कल्लाणं मंगल देवयं चेहयं विणएणं पज्जुवासणिज्जे' कल्याणमित्यादिधिया विनयेन पर्युपासनीयं 'दिवे' दिव्यं प्रधानं 'सच्चे' सत्यं सत्यादेशनात् 'सचोवाए''
कोणिक-राज्ञः वर्णनं
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