Book Title: Sastravartasamucchaya
Author(s): Haribhadrasuri, K K Dixit
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 251
________________ २२० शास्त्रवार्तासमुच्चय वह व्यक्ति चिन्तामणि रत्न के स्वरूप का वास्तविक ज्ञाता नहीं जो अपने को उक्त परिस्थिति में पाने पर चिन्तामणि रत्न की प्राप्ति कराने वाले उपायों में से किसी एक का आश्रय न लेकर किसी अन्य ही उपाय का आश्रय लेता है; सचमुच जो भौरा मालतीपुष्प की गंध से परिचित है वह कुशों में रमण नहीं करता । मुक्तिश्च केवलज्ञानक्रियातिशयजैव हि । तद्भाव एव तद्भावात् तदभावेऽप्यभावतः ॥६८९॥ मोक्ष का कारण भी केवल ज्ञान (अर्थात् सर्वविषयक ज्ञान) तथा उत्कृष्ट प्रकार की एक क्रियाविशेष (अर्थात् शैलेशीकरण) दोनों मिलकर ही बनते हैं, क्योंकि उन दोनों की उपस्थिति में ही मोक्ष होती है तथा उनमें से एक की भी अनुपस्थिति में नहीं । न विविक्तं द्वयं सम्यगेतदन्यैरपीष्यते । स्वकार्यसाधनाभावाद् यथाऽऽह व्यासमहर्षिः ॥६९०॥ कुछ दूसरे वादियों का भी यही मत है कि ज्ञान तथा क्रिया का एक दूसरे से विरहित रहना ठीक नहीं और वह इसलिए कि उस दशा में वे (अर्थात् ज्ञान तथा क्रिया) कार्यसाधक नहीं सिद्ध होते । जैसा कि महर्षि व्यास का कहना है : बठरश्च तपस्वी च शरश्चाप्यकृतव्रणः ।। मद्यपा स्त्री सतीत्वं च राजन्न श्रद्दधाम्यहम् ॥६९१॥ . "राजन् ! यदि किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में मुझसे कहा जाए कि वह मूर्ख भी है और तपस्वी भी, अथवा यह कि वह शूर भी है और घावहीन शरीर वाला भी, अथवा यह कि वह शराबी स्त्री भी है और सती भी तो मैं इस बात का विश्वास नहीं करता ।" ___ (३) मोक्ष का स्वरूप मृत्यादिवर्जिता चेह मुक्तिः कर्मपरिक्षयात् । नाकर्मणः क्वचिज्जन्म यथोक्तं पूर्वसूरिभिः ॥६९२॥ मृत्यु आदि से विरहित मोक्ष की प्राप्ति कर्मों का सर्वथा नाश होने पर होती है, और वह इसलिए कि कर्मों से रहित व्यक्ति कभी नया जन्म नहीं पाता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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