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ग्यारहवाँ स्तबक
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सर्वप्राणिस्वभाषापरिणतिसुभगं कौशलं यस्य वाचां तस्मिन् देवाधिदेवे भगवति भवताऽऽधीयतां भक्तिरागः ॥७०१॥
जिन बुद्ध को (अर्थात् बोधिप्राप्त जैन तीर्थंकर को) लोगों को जनाने के उद्देश्य से अग्नि, जल तथा वायु ने उनकी स्तुति लोकहित की भावना से की, जिनमें वह ज्ञान उत्पन्न हुआ जो जगत् में पाई जाने वाली ज्ञानवंध्यता के कारणों का नाश करता है, जिनकी वाणी को यह सुचारु कुशलता प्राप्त है कि वह सब प्राणियों की अपनी अपनी भाषा में रूपान्तरित हो जाती है, उन देवाधिदेव भगवान् को आप अपने भक्तिपूर्वक अनुराग का विषय बनाइए ।
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