Book Title: Saptadash Puja Prakaran Garbhit Shantinath Stavan
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ अनुसन्धान ४५ दमण-पाडल-केतकी, जाई, जूइ, मचकुंदो रे, । विउलसिरी वनमालति, अति अदभुत अरविंदो रे, सतर.... १५ इम विध विध पु(फु)लावली, जिनचरणे विरचावे रे, पंचमी पूजा करे तिके, मनवंछित फल पावे रे, सतर.... १६ ढाल-चोथी छठ्ठी पूजा हिवे सुणो रे, अतिसुगंध सुविशाल, जिनवर कंठे महमहे रे, विध-विध फूल्लामाल, साहिब समरियै रे, सोलमो जिनवर संति भावइ भेटीयेरे, सो भयभंजण भगवंत, साहिब.... १७ (आंकणी) जिन अंगि रची रे, बे पंचवरणा फूल, सुर-नर-किन्नर मोहिये रे, सातमी पूजा अमल, साहिब.... १८ जिनवर अंगइ मोरी रे, कसतुरी - कपूर, ईण परि पूजा आठमी रे, करम करे चकचूर, साहिब.... १९ प्रभु ऊपर पटकुलनी रे, रतन- जडत सुखकार, पंचवरणी धज लहे[रे] रे, नवमो एह प्रकार, साहिब.... २० ढाल-पांचमी [अलबेलानी] आभरणे अति दीपता रे लाल, सोहे संति जिणंद सुखकारि रे, मेरे मन तूं ही वस्यो रे लाल, दिन दिन अधिक आणंद सुखकारी रे... आभरणे.... २१ मस्तक मुकुट सुहांमणो रे लाल, बाहे बेहरखा सार सुखकारी रे, कांने कुंडल झिगमगे रे लाल, उर मोतिनको हार सुखकारी रे.... __ आभरणे.... २२ बिहु परि बे चामर वीजिये रे लाल, सिंहासन सिरदार, सुखकारी रे, तीन छत्र सिर ढालियै रे लाल, दसमी पूजा उदार सुखकारी रे, आभरणे.... २३ --------- ------- दमणो-मरुओ-केतकी रे लाल, फूल घणा ईम मेलि सुखकारी रे, आभरणे.... २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7