Book Title: Saptadash Puja Prakaran Garbhit Shantinath Stavan
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 1
________________ ४८ अनुसन्धान ४५ सप्तदश पूजा प्रकरण गर्भित शान्तिनाथ स्तवन सं. मुनिसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयौ जिनबिम्ब अने जिनचैत्य साथै संकळायेलुं एक अनोखुं अनुष्ठान एटले पूजा. प्रस्तुत काव्य सर्वोपचारपूजाना भेदरूप गणाती सत्तरभेदी पूजानी संक्षिप्त पद्य रचना छे. कर्ताओ सत्तरभेदीपूजा पद्धतिने ४५ काव्योमां रजू करवा खूब सुन्दर प्रयास कर्यो छे अन्तिम काव्योमां प्रतिमाजी न स्वीकारता जनोना मतनुं खण्डन करवा आगम ग्रन्थोनी साक्षी पण मूकी छे. कर्ता श्रीसार खरतरगच्छनी क्षेमशाखामां थयेला वाचक रत्नहर्ष गणिना शिष्य छे. तेमणे सं. १६७८ मां गुणस्थानक क्रमारोह तेमज १६८१ मां जिनराजसूरि रास नामनी कृतिओ रची छे, तेवी जाणकारी मळे छे. प्रस्तुत काव्यनी ४३-४४मी कडीमां आवता 'फलवर्द्धिपुर' शब्द परथी आ कृतिनी रचना फलोधि(राज.)मां बिराजमान श्रीशान्तिनाथस्वामीने अनुलक्षीने थई होय एम लागे छे. बीजां पण सत्तरभेदी पूजाना २ स्तवन प्राप्त थाय छे. १. पू. पार्श्वचन्द्रसूरिजीम (बृहत्तपागच्छ ) गा. २९. सं. १६ मो सैंको २. पू. वीरविजयजी म. (खरतरगच्छ ) सं. १६५३ जे ते वखतनी सत्तरभेदीपूजा प्रकारनी लोकप्रियता सूचवे छे. प्रस्तुत प्रतनी झेरोक्ष श्री मि-विज्ञान - कस्तूरसूरिजी ज्ञानभण्डारमां संगृहीत श्रीजामनगरना ज्ञानभण्डारनी छे. प्रत आपवा बदल बन्ने भण्डारोना व्यवस्थापकोनो आभार. आ ग्रन्थनी बीजी नकल न मळता एक प्रत उपरथी कृतिनुं सम्पादन थयुं छे. सप्तदश पूजा प्रकरण गर्भित शान्तिनाथ स्तवनम् सोलमो जिनवर सेवी (वि) येजी प्रहसम बे कर जोडि, सुप्रसन वदन सुहामणोंजी, पूरें वंछित कोडि, मुझ मन मोहियो जिन गुणेजी, जिम मधुकर वणराय, नांम सुण्यां मन उह्लसैजी, लछि लीला थिर थाय, Jain Education International For Private & Personal Use Only सोल.... १ सोल.... २ www.jainelibrary.org

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