Book Title: Saptadash Puja Prakaran Garbhit Shantinath Stavan Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ सप्टेम्बर २००८ तूं जगजीवन वालहोजी, तूं गति तूं मति देव !, माहरे चित्त तूं हि ज वस्योजी, तिण करू ताहरी सेव, सोल.... ३ धन धन तेह ते(जे) ताहरीजी, पूजा रचै सुविचार, सुलभबोधि हीवे ते सदाजी, धन धन तसु अवतार, सोल.... ४ रायपसेणिये सूविचारीयेजी, पूजा सतर प्रकार, अति घणो ऊलट आदरीजी, ते सूणिज्यो अधिकार, सोल.... ५ ढाल-२ [नणदल जाति] भगवंत पूजो भाविस्युं, त्रिकरण सुध त्रिकाल हो भवियण जिम सुख संपत्ति संपजें, फूले मनोरथ माल हो भवियण, भगवंत.... ६ स्नान करि पूरव दिसे, करि पावन मनरंग हो भवियण पेहरि इकपट धोतियो, इकपट उत्तरासंग हो भवियण, भगवंत.... ७ मस्तक तिलक सुहामणो, मुहमइ ठवि मुखकोस हो भवियण, पूजा इणपरि कीजीयें, छांडि रोगै-सोस (राग ने रीस?)हो भवियण, भगवंत.... ८ लोहमहथो हाथे धरि, पूजी प्रतिमां देह हो भवियण हिव विस्तिर्ण पूजा रचो, आणी नवल नेह हो भवियण, भगवंत.... ९ ढाल-३ सतरभेद पूजा सूणो, उत्तमनी ओ करणी रे, गोत्र तिर्थंकर बांधियइ, भावि भवभयहरणी रे, सतर.... १० गंगोदक खीरोदके, भरि भिंगार विसालो रे, पहिली पूजा कीजियें, प्रतिमांने पखालो रे, सतर.... ११ पग-जानूं-कर-खंधे-सिरे, भाल कंठ पुजीजै रे, उरनइ उदरंतर वली, नव अंग तिलक करीजै रे, सतर.... १२ केसरी भरी कचोलडी, मृगमद चंदन मेली रे, बीजी पूजा भली परे, ---. सतर.... १३ ------ ------- ------------------------- चउथि पूजा अति सुहउः, वासखेप वखाणो रे, सतर.... १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7