Book Title: Saptabhangimimansa Author(s): Shivanandvijay Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha View full book textPage 9
________________ * प्रस्तावना 131562 प्रायः प्रस्तावना का हेतु एसा है कि सशिखर देवायतन को ध्वजापताका चंद्राना | ग्रन्थकार स्वयं अपने ग्रन्थकी तारीफ किसी तरह भी नही कर सकते और करे तो अपनी तारीफ अपने मुखसे करना बराबर है और एसा करनेसे जगतमें, लोकमें और साहित्यकारोंमें अवगणना पात्र दीखे इसलिये प्राय: करके प्रस्तावना दूसरे साहित्यकारके हाथ से लिखाना उचित समझा जाता है। एक बात यह भी है कि प्रस्तावना - कार - प्रन्थकारकी और ग्रन्थकी प्रशंसा मुक्त दीलसे बतलावे इसमें ग्रन्थकार की महत्ता है एसा ख्याल करके मैं कुछ दिखता हूं। लेकिन मेरे में यह योग्यता नहीं कि एसा विद्वत्तापूर्ण मौलिक ग्रन्थकी प्रस्तावना लिख शकूं, फीरभी गुरु कृपा से आशान्वित हूं कि निर्विघ्नतया यह कार्य पूर्ण करूं ! ऐसे वादे समय में शास्त्राभ्यास ही कठीनतर वस्तु है और प्रायः कर के जैन समाजमें देखने में आता है बहांतक शास्त्रा ' 3Page Navigation
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