Book Title: Sanskrut Jain Vyakaran Parampara
Author(s): Geharilal Sharma
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ संस्कृत-जैन-व्याकरण-परम्परा ३५५ १६. कविकल्पदुम---वि० सं० १५७७ में तपागच्छीय हर्षकुल गणि ने इस ग्रन्थ की रचना की। इसमें सि० श० में निर्दिष्ट धातुओं की विचारात्मक पद्यबद्ध रचना है। इन सभी टीका ग्रन्थों के अतिरिक्त सिद्धहेमशब्दानुशासन से सम्बन्धित अनेक प्रक्रिया-ग्रन्थ भी उपलब्ध होते हैं। इन ग्रन्थों में मूल शब्दानुशासन के क्रम को बदलकर प्रक्रियाओं के क्रम से आवश्यकतानुसार सूत्रों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार के ग्रन्थों का निर्देश अग्रिम पंक्तियों में प्रस्तुत है। १. हेमलघुप्रक्रिया इस ग्रन्थ की रचना तपागच्छीय उपाध्याय विनयविजयगणि ने वि० सं० १७१० में की। विषय की दृष्टि से यह ग्रन्थ संज्ञा, सन्धि, लिंग, युष्मदस्मद्, अव्यय, स्त्रीलिंग, कारक, समास और तद्धित इन प्रकरणों में विभक्त है। २. हेमबृहप्रक्रिया इसकी रचना आधुनिक कविवर भायाशंकरजी ने, हेमलघुप्रक्रिया के क्रम को ध्यान में रखते हुए की है । इसका रचनाकाल १०वीं शती है। ३. हेमप्रकाश यह हेमलघुप्रक्रिया की ३४००० श्लोक प्रमाण स्वोपज्ञ रचना है। इसकी रचना वि० सं० १७६७ में हुई तथा स्थान-स्थान पर लेखक ने अपनी व्याकरण विषयक मौलिक योग्यता का परिचय भी दिया है। ४. चन्द्रप्रभा हेमकौमुदी यह भी सि०श० का प्रक्रिया ग्रन्थ है । इसकी रचना तपागच्छीय उपाध्याय मेघविजयजी ने वि० सं० १७५७ में आगरे में की। इसका क्रम भट्टोजी दीक्षित रचित सिद्धान्त कौमुदी के अनुसार रखा गया है। इसका ६००० हजार श्लोक परिमाण है। ५. हेमशब्दप्रक्रिया इसकी रचना मेघविजयगणि ने वि० सं० १७५७ के आसपास की। यह ३५०० श्लोक परिमाण का ग्रन्थ है । इसकी हस्तलिखित प्रति भण्डारकर इन्स्टीट्यूट पूना में है। ६. हेमशब्दचन्द्रिका ६०० श्लोक प्रमाण के इस ग्रन्थ की रचना उपाध्याय मेघविजयगणि ने की। पूना के भण्डारकर इन्सटीट्यूट में इसकी वि० सं० १७५५ में लिखित प्रति है। ७. हेमप्रक्रिया–वीरसेन द्वारा रचित है। इन ग्रन्थों के अतिरिक्त हेमशब्दसमुच्चय, हेमशब्दसंचय, हेमकारकसमुच्चय आदि ग्रन्थों का भी अन्यान्य ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है, जो हेमशब्दानुशासन से सम्बन्धित हैं। भिक्षुशब्दानुशासन को टीकाएँ भिक्षुशब्दानुशासन जैन व्याकरण परम्परा का नूतनतम व्याकरण ग्रन्थ माना जा सकता है। इस पर भी अनेक टीका-ग्रन्थों की रचनाएँ हुई है। १. भिक्षुशब्दानुशासनलघुवृत्ति यह ग्रन्थ भिक्षुशब्दानुशासन की वृत्ति है । इसको लिखने का कार्य तो मुनि श्री तुलसीराम जी ने प्रारम्भ १. जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग ५, पृ० ४३-४४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20