Book Title: Sanmatitarka Prakaranam Part 2
Author(s): Sukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad

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Page 21
________________ १३ प्रसिद्ध छे. ए नव्य पक्षनी इमारत तर्कना पाया उपर चणाएली छे. आगमना पाठो उपरथी स्पष्टपणे फलित थती केवळोपयोगना क्रमपक्षनी परंपरानो अने पाछळथी विचारबळे उत्पन्न करेली केवळोपयोगना युगपद् पक्षनी परंपरानो सबळ विरोध शमाववा अने पोताना पक्षने सप्रमाण स्थापवा माटे दिवाकर श्रीए मस्तुत बीजा काण्डमा अद्भुत बुद्धिचातुरी अने प्रतिभा वापर्या छे. जेम हमेशां बनतुं आव्युं छे तेम ते वखते पण शास्त्रना आधार सिवाय कोई पण वस्तु लोकोने गळे ऊतारवानुं अशक्यप्राय जणावाथी दिवाकरश्रीए बे विरोधी परंपराओ सामे पोतानो पक्ष तर्कबळथी मूक्यो खरो पण तेनी साबीती तो शास्त्रवाक्योने आधारे ज करी एम करवामां पण तेमणे कौशळ खूब वापर्यु छे. विषय अने तेना प्रतिपादननी आ ज नवीनता प्रस्तुत बीजा काण्डमां छे. ए नवीनता समजवा, एनो तुलनात्मक दृष्टिए अभ्यास करवा अने तेना पक्षप्रतिपक्षोनी दलीलो जाणावा माटे गा० ४ पृ० ५९७ - ६०४ उपर एक टिप्पण आपवामां आव्युं छे. एमां आर्यावर्तीय मुख्य मुख्य बधां दर्शनोना सर्वज्ञत्वविषयक पक्षप्रतिपक्षो उपरांत जैनदर्शनमां ते संबंधी उपलब्ध थती बधी विचारपरंपराओ प्रधान प्रधान पुरस्कर्ता अने ग्रंथोनां नाम साधे आपवामां आवी छे. दिवाकर श्रीना प्रबळ विरोधी सैद्धान्तिक जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण हता तेमना विशेषणवती नामक नहि छपायेल ग्रंथमां प्रस्तुत विषयनी सौथी वधारे चर्चा मळे छे. तेथी एनो ए बधो भाग टिप्पणमां आपी तेमां अमुद्रित नन्दिचूर्णि अने लघुनन्दिटीकानो उपयोग करी प्रस्तुत विषय उपरनी मुद्रित अमुद्रित समग्र ज्ञात साहित्यनी सामग्री एकत्र करवामां आवी छे ते अभ्यासीओना मानसने अनुकूळ थाय एवी छे. उपयोगनो अभेद पक्ष दिवाकर श्रीनो खोपज्ञ कहेवाय छे. ए विचारनां सूक्ष्म बीजो जैन परंपरामां प्रथम हतां के नहि ते कहेवुं जो के कठण छे छतां बहु बारीकीथी विचार अने तुलना करतां एम चोक्खु लागे छे के न्याय वैशेषिक आदि सर्वज्ञवादी जैनेतर दर्शनोना सर्वज्ञत्वसंबंधी विचारोना उंडा अभ्यासे अने तुलनात्मक बुद्धिए उपयोगनो अभेद पक्ष उपस्थित करवामां दिवाकरश्रीने कांइक प्रेरणा आपी हशे. (ख) संपादनने लगती बाबतमां मुख्य पांच मुद्दा अत्रे कहेवाना छे. १ प्रतिओ २ पाठांतरो ३ संशोधनमां वपरायेल ग्रंथोना उपयोगनी पद्धति ४ तद्दन अप्रसिद्ध एवां लिखित पुस्तकोनो उपयोग ५ एक अगत्यना ग्रंथनो उपयोग शक्य छतां नहि करवानुं कारण. १ त्रीजा भागनी पेठे आ भागना संशोधनमां पण कागळ उपरांत ताडपत्रनी प्रतिओनो उपयोग करवामां आव्यो छे. फेर एटलो के त्रीजा भागमां ताडपत्रनी बन्ने प्रतिओ अधूरी हती ज्यारे आ भागमां ताडपत्रनी बृहत् प्रति तो संपूर्ण ज हती. कागळ अने ताडपत्रनी प्रतिओमांनो प्रस्तुत बीजा काण्डने लगतो धो भाग मोटे भागे शुद्ध ज छे. तेमां य भां० मां० वा० वा० अने ताडपत्रनी प्रतिओनुं स्थान शुद्धिनी दृष्टिए उत्तरोत्तर चडतुं छे. ताडपत्रनी प्रतिओमां शुद्धि उपरांत नानां नानां टिप्पणोनी पण एक खास विशेषता छे. जेथी प्रस्तुत संशोधनमां बहु मदद मळी छे. एमांनां केटलांक टिप्पणो मां० प्रतिमां पण छे. २ पाठांतरो लेवां अने तेमांथी पसंद करी गोठववानो क्रम तो प्रथमना भागोनी जेम ज आ भागमां पण राखवामां आव्यो छे छतां प्रतिओनी शुद्धि अने अन्य साधनोनी सगवडने लीधे आ भागमां पाठांतरो बहु आव्यां ज नथी अने लील पाठांतरोमांथी पण यथासंभव ओछा राखवामां आव्यां के.

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