Book Title: Samb Pradyumna Charitram
Author(s): Ravisagar Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रद्युम्न चिन्मार्गणसंयुक्ताः । केचिराहुलसंगिनः ॥ जालिकाशालिकाः केचि-त्केचित्परिहितांशुकाः ॥ ॥ २७ ॥ केचिद् गृहीतनाराचाः । केचिदादत्तकुंतकाः ॥ खझान्वितकराः केचि-त्केचित्कोदंम्पा. णयः ॥ २७ ।। केचन मुद्गरारंन्नाः । केचित त्रिशूलशूरताः ॥ सुनटानां हि शस्त्राणां । यस्त्वेन वलिष्टता ॥ ३० ॥ केचिन्मत्तगजारूढा । यारूढाश्च केचन । केचिच्चारुरथारूढाः । केचिचरणचा रिणः ॥ ३१ ॥ समुद्रविजयेशेन । रचयित्वेति वाहिनीं ॥ दत्वा च सुमुहूर्तेन । लघुबंधुर्व्यसयंत ॥ ॥ ३२ ॥ संजातैः शकुनैः सद्भि-श्चलनानंतरं ततः ।। वसुदेवोऽटपकालेन । मीमां सिंहपुरो ययौ ॥ ३३ ॥ जरासंधमहीशस्य । निर्देशमुररीकुरु ॥ यदि नो तर्हि संग्राम-कृते सजीनव पुतं ।। ॥ ३४ ॥ तत्र स्थित्वेति दूतेना-झापि सिंहस्थस्य तु ॥ सकंसवसुदेवेन । संतो न हि सकैतवाः॥ ॥ ३५ ॥ दुतोक्तवाक्यमाकर्ण्य । क्रुः सिंहस्थो बली ॥ युघाय निर्गतश्चम्वा। सह मानेन सिंह. वत् ॥ ३६ ॥ ननयोर्दलसंपर्के । पर्वरार्कयोगवत ॥ नबिते रेणुभिर्जाता । सति सूर्येऽपि यामि नी ॥ ३० ॥ रणांगणे रणतूर्य-ध्वाने चाम्लानविग्रहाः ॥ अनृत्यंश्च नटा रंग-मंडपे नर्तका श्च । ॥ ३० ॥ जायमाने मिथो युछे-ऽदोभयत्तचमूं नृपः । दधावे वसुदेवेन । कंससारथिना सह ॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 291