Book Title: Samayik se Samta ka Abhyas Author(s): Hirachandra Acharya Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 8
________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 187 यह है कि वेशभूषा साधना-समता में सहयोगी बनती है। जैसे- घोड़ी पर बैठा दूल्हा भी 100 गालियाँ सहन कर लेता है, साधक का वेष पहने हुआ बहुरूपिया भी सोने की मोहरें ग्रहण नहीं करता, महावीर एवं बुद्ध का नाटक करने वाला भी अनेक विपरीतताएँ सहन करता है, इसी तरह मैं भी अभी भगवान महावीर की धर्म - प्रज्ञप्ति स्वीकार कर समता की साधना करने बैठा हूँ, अतः मुझे भी 18 पापों से दूर रहना है, ऐसी मन में दृढ़ता आती है। जब आप यात्रा की, शयन की, शादी की, खेलने की, व्यायाम की, इन सबकी वेशभूषा अलग रखते हैं तो साधना की वेश-भूषा में लापरवाही क्यों? इन सब पर शायद आपका चिंतन चल सकता है - महाराज इतने बंधन लगायेंगे तो सामायिक करना ही छोड़ देंगे। पर भाई ! घर के, दुकान के, मिलने-जुलने के आवश्यक कार्यों को छोड़कर जब आप साधना के लिये समय ही निकालते हैं तो आधा या पाव फल प्राप्त करने के बजाय, आप उसका पूर्ण लाभ उठा सकें, इस हेतु द्रव्य-स्वरूप की शुद्धि की बात की जा रही है। यदि समता भाव प्रारम्भ में न भी आ पाये, तब भी द्रव्य सामायिक लाभदायक है। कारण कि उतने समय तक बाहर के हिंसा, झूठ आदि पाप से आप बच गये। दूसरे, देखने वालों में भी श्रद्धा-प्रतिष्ठा भी जमी। भावरूप लाख नहीं मिले तब भी द्रव्य रूप हजार अच्छे हैं। महल नहीं मिला तो फुटपाथ की बजाय झोंपड़ी भी अच्छी लगती है । क्षेत्र शुद्धि किस स्थान पर बैठकर सामायिक की साधना करनी चाहिये ? शास्त्र में श्रावक की साधना के लिये स्वतंत्र पौषधशाला का उल्लेख मिलता है। आनन्द, शंख पुष्कलि आदि श्रावक आत्मगुणों के पोषण के लिये पौषधशाला में सामायिक करते थे। सभी के लिये ऐसी अनुकूलता संभव नहीं है, उस स्थिति में जहाँ कोलाहल हो, आरम्भ - समारम्भ एवं विकार का वातावरण न हो, चित्त में चंचलता नहीं आवे, ऐसे समभाव में सहायक क्षेत्र को उपादेय माना गया है। इसे स्थानक, उपाश्रय, सामायिक- स्वाध्याय भवन, साधना-आराधना स्थल किसी भी नाम से कहा जा सकता है। आज ये स्थल भी 10-20 चित्र लगाने से, दानदाताओं की नामावली से, सावद्य व्यवहार में काम लेने से, साधना में सहायक नहीं रहे हैं, तो घर- बंगलों की स्थिति भी अलग तरह की है। वहाँ डाइनिंग रूम, ड्राइंग रूम, किचन, बाथरूम, बेडरूम ये सब तो मिल सकते हैं, गार्डन व गैरेज, कर्मचारियों रूम भी मिल जायेंगे, लेकिन साधना-आराधना का कक्ष (प्रेयर रूम) नहीं मिलता। जब आत्मशांति के लिये अमीरों के यहाँ ऐसे कक्ष नहीं मिलते, तो सामान्य स्थिति वालों के पास आवास की न तो बड़ी जगह होती है, न ही धन दौलत । अतः वे अपने घर में अलग से साधना कक्ष बनाने की स्थिति वाले नहीं होते। इसका कारण? साधना के प्रति श्रद्धा नहीं जगी है। कर्नाटक की ओर विहार करते हमने ऐसे सामान्य स्थिति वाले घर भी देखे हैं- जहाँ मात्र रसोई के अलावा दो कमरे हैं, फिर भी वे एक हाथ जितनी जगह में शिवलिंग स्थापित कर भक्ति करते देखे गये हैं। सामान्य साधकों के लिये सार्वजनिक एकान्त स्थान सामायिक / पौषध की साधना के लिए मिलते हैं। आज कहीं-कहीं पर साधना-आराधना का लक्ष्य हटाकर साज-सज्जा से युक्त चित्रकारी वाले Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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