Book Title: Samantbhadra Bharati
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Z_Acharya_Shantisagar_Janma_Shatabdi_Mahotsav_Smruti_Granth_012022.pdf

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Page 3
________________ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ काञ्चां नग्नाटकोहं मल-मलिनतनु लाम्बुसा पाण्डुपिण्डः । पुण्डोंड्रे शाक्यमिक्षु दशपुरनगरे मिष्टभोजी परिवाद । वाराणस्यामभूवं शशधरधवलः पाण्डुरागस्तपस्वी, राजन् यस्यास्तिशक्तिः स वदतु पुरतो जैन निर्ग्रन्थवादी। आचार्य समन्त भद्र जहां जिस वेश में पहुंचे उसका उल्लेख इस पद्य में किया गया है। साथ में यह भी व्यक्त किया गया है कि हे राजन् ! मैं जैन निम्रन्थवादी हूं जिस की शक्ति हो सामने आकर वाद करें। आचार्य समन्तभद्र के वचनों की यह खास विशेषता थी कि उनके वचन स्याद्वाद न्याय की तुला में तुले हुए होते थे। चूं कि वे स्वयं परीक्षा प्रधानी थे। आचार्य विद्यानन्द ने उन्हें 'परीक्षेक्षण'परीक्षानेत्र से सब को देखनेवाला-लिखा है। वे दूसरों को परीक्षा प्रधानी बनने का उपदेश देते थे । उनकी वाणी का यह जबर्दस्त प्रभाव था कि कठोर भाषण करने वाले भी उनके समक्ष मृदु भाषी बन जाते थे। स्वामी समन्तभद्र के असाधारण व्यक्तित्व को व्यक्त करने वाले पद्य में कुछ विशेषण ऐसे उपलब्ध होते हैं जिन का उल्लेख अन्यत्र नहीं मिलता। वह पद्य' इस प्रकार है आचार्योऽहं कविरहमहं वादिराट् पण्डितोऽहं, दैवज्ञोऽहं भिषगहमह मान्त्रिकस्तन्त्रिकोऽहं । राजन्नस्यां जलधिवलया मेखलाया मिलायाम्, आज्ञासिद्धः किमिति बहुना सिद्धसारस्वतोऽहं ॥" इस पद्यके सभी विशेषण महत्त्वपूर्ण हैं । किन्तु उनमें आज्ञासिद्ध और सिद्ध सारस्वत ये दो विशेषण समन्तभद्र के असाधारण व्यक्तित्व के द्योतक हैं । वे स्वयं राजा को सम्बोधन करते हुए कहते हैं कि हे राजन् ! मैं इस समुद्रवलया पृथ्वी पर आज्ञा सिद्ध हूं--जो आदेश देता हूं वही होता है। और अधिक क्या कहूं ? मैं सिद्ध सारस्वत हूं-सरस्वती मुझे सिद्ध है । सरस्वती की सिद्धि में ही समन्तमद्र की वादशक्ति का रहस्य सन्निहित है। स्वामी समन्तभद्र को 'आद्यस्तुतिकार' होने का गौरव भी प्राप्त है। श्वेताम्बरीय आचार्य मलयागिरि ने 'आवश्यक सूत्र' की टीका में 'आद्य स्तुति कारोप्पाह'--वाक्य के साथ स्वयंभूस्तोत्र का 'नयास्तव स्यात्पद-सत्यलाञ्छन (ञ्छिता) इमे' नाम का श्लोक उद्धृत किया है । आचार्य समन्तभद्र के सम्बन्ध में उत्तरवर्ती आचार्यों, कवियों, विद्वानों और शिलालेखों में उनके यश का खुला गान किया गया है । १. देखो, पंचायती मन्दिर दिल्ली का जीर्ण-शीर्ण गुच्छक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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