Book Title: Sakalchandragani krut Sattarbhedi Pooja Sastabak Author(s): Diptipragnashreeji Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ अनुसन्धान ३९ ते गर्नु तिलक करे ७ । हृदि ते होउं, हिइं तिलक करे ८ । उदर ते पेटई तिलक करई ९ । इम सृष्टई तथा समकालें एहवां नव तिलक कीजें, जिननें नव अंग । तें ए देवनो देव ते जे वितराग तेहनो गात्र ते शरीरं विलेपतांपूजतां पछइं समग्र लेपीई तिलक करे ए भावना भावीइं प्रभो ! स्वामी । तुह्मे सदा शीतल-सांत सुद्ध सहजभावइ छो, पणि है अनादि कालनो विषय क्रोध कषायें थाइं तप्त छु । दुरित कर्म-रजइ गुडित-जूत छु । माटें तुमें दूरीत-पाप, प्रभो ! स्वामी ! टालों । ते प्रभुनी पूजा थकी उपसांत थाउं। ।।२।। हवें बीजी पूजानुं गीत । दुआलं । राग तोडी अथवा वैराडी । राग तोडी तथा वैराडीइं रागमां स्तवनां कहइ छ । तिलक करो प्रभु नव अंगई, कुंकुमचंदन घसी शुचि घनसार । प्रभु पगि जानु कर, अंस सिर भाल गलि, कंठि दि उदर सार, अहो भाल थल कंठ रिदय उदरि च्यार, सय पूजाकार ।।१॥ तिलक० तिलक करो प्रभु श्रीवीतरागनई नव अंगनई विषइ । पूर्वे कही ते जाणवा स्यै करीनई ? कुंकुम कहतां केशर-चंदन, ते आज सुकडि साथई शुचि घसी अंबर क० बरास कपूरमांहे भेलवीइं बावना चंदनस्यूं । एतले ए घोलमां वर्ण, गंध नै शीतलता ए त्रिण्य ऋण्य भावें करीने हुता, तेहनो ए भाव केसर सुकडि बरास मेल्यि थाई । प्रभुनई चरणे १, जानुइं २, हाथई ३, अंश क. खभइ ४, शिर क. मस्तकें ५, भाल ते निलाड ६, गलकंठि ते गलि ७, हृदि क० हीयें ८, उदरि ते पेट ९, एहवा नव अंगई सार-प्रधान तिलक कीजई । अने इहां पूजानो कार-करनार स्वयें वीतराग पूज्या पेलां च्यार तिलक करई ते किहां ? प्रथम भालस्थलैं, कपोले, आज्ञा धारवानी भावनाई ते १ । कंठे प्रभु गुणस्तवनां घोषवानी भावनाई २ । हृदये प्रभुगुणचिंतन धारवारूपइं तें भावें ३ । उदरई प्रभु गुणनी अतृप्तिपणे ४ । एवं च्यार तिलक करइ । कपूर, अगुरु, कस्तूरि, चंदन द्रव्ये मिश्रित विलेपने । ते यक्षकद्दम कहीइं ॥१॥ १५. अमे- ब. । १६. तप्ती छीइं-ब. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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