Book Title: Sakalchandragani krut Sattarbhedi Pooja Sastabak
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 34
________________ 72 प्रकारना वाजित्रनी सामेरी रागई कहइ छइ : राग सामेरी ॥ अनुसन्धान ३९ समवसरण जिम वाजा वाजई, देव दुंदुभि अंबर गाजई । ढोल नीसाण विसालो । भुंगल झल्लार पणव नफेरी । कंसाला दडवडी वर भेरी । सिराइ रणकालो ॥१॥ सामेरी रागेण गीयतें । त्रिपदी थोयनी देशी । चोवीस तीर्थंकरनें समवसरणने विषई जिम देवता गढ़नें कांगरें ऊभा थिकां वाजा "वैजावें । देवतानी दुंदुभि आकाशनें विषई गाजई । आकाशे अंबर गाजी रहें । च्यार दरवाजई ढोल, नीसाण, नगारां मोटां तिम वाजइ । वाजते थकई भविजन सांभली भुंगल, नाल, झलरि, पर्णव कहतां ढोल, वली नफेरी, कंसाल, दुडवडी - मोटी भेरी, सकल शब्द वाजतें थकें, पाणव ने नफेरी ढोल वाजतै, मोटी कंसालना शब्द वलि भेर वाजतें थकें, इत्यादिक सरणाईना शब्द रणतूरना शब्द "काहलना सब्द वाजतें थातई ॥१॥ १५२ मरुज वंश सरती नवि मुंकई, सतरमी पूजा भवि नवि चूकइं । वेणी वंश कहई जिन जीवो, आरती साथि मंगल पईवो ॥२॥ मादल, वंशनी मूरली, सर तिनई-तीन स्वरें बोलती थकी शब्द न मूंकई । एहवी सतरमी पूजा भविक देव - मनुष्य चूक नही । जे भावखंडना न थाई । वेणी वंशवीणा शब्द, मुरली, श्री वीतरागने इंम कहै छै जे 'श्रीजिन चिरंजीवो' ! 'स्वामी ! तुं चीरंजीव' । पूज्यें पूज्य ज्यै जीव जें आरती साथइ मंगलदीवो प्रगट करई, स्वामीनें आरती मंगल ॥२॥ हवइ सतरमी पूजानुं गीत कहै छै । गीतं ॥ घणुं जीवि तूं जीव जिनराज जीवे घणुं शंख सरणाई बोलै । १५१. वाजड़ अ. । १५२. झालर ना शब्द ब. । १५३. काहली ब. । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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