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किसी ज़माने में भारत में अतिथि को देव - तुल्य समझा जाता था. तब पानी मांगने पर लोग सद्भावना से दूध पिलाते थे. उस ज़माने में घी - दूध की जैसे नदियाँ बहती हों आज दुर्भावना ने क्या कहर ढाया है, घी - दूध तो दूर रहा, पानी की नदियाँ भी अब सूखने लगी हैं.
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