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जब भी किसी की निन्दा का विचार मन में उठे तो जानना कि स्वयं भी उसी ज्वर से ग्रस्त हो रहा हूँ. दूसरों की निन्दा करके लोग यह सोचकर प्रसन्न होते हैं कि हम उनसे अच्छे हैं. वे भूल जाते हैं कि निन्दा अपने आप में निन्दनीय है. निन्दा दुर्भावना का ही अलग रूप है. सद्भावना से भरा व्यक्ति कभी किसी की निन्दा में संलग्न नहीं होता. ..
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