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परमात्मा कोई अजनबी वस्तु नहीं है, कोई सर्वथा नवीन - भिन्न तत्त्व नहीं है. बल्कि आत्मा का परम विकसित, विशुद्ध - निर्मल स्वरूप ही परमात्मा है. हर भवी आत्मा निश्चय ही परमात्मा बन सकती है, यदि उसे विशुद्ध बनाया जाय.
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