Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad

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Page 9
________________ -.. .. -.. -.. -..'सागर-समुदाय-एकता-संरक्षक, तीर्थ-उद्धार-कार्य-प्रवृत्त, गुणानुरागी' इस "सचर्णिक-आगम-सत्ताणि' श्रेणि भाग १ से ८ के संपूर्ण अनदान के प्रेरणादाता पूज्य शासनप्रभावक आचार्य श्री हर्षसागरसूरिजी महाराज साहेब ००००००००००००००००००००००००० पूज्यपाद स्व. गच्छाधिपति देवेन्द्रसागर-सूरीश्वरजी के विनयी शिष्य एवं दो गच्छाधिपतिओ के मुख्य सहायक के रुपमे 'सागर समुदाय' के सुचारु संचालक | पूज्य हर्षसागरसूरिजी, जिन की प्रेरणा से ये "स चर्णिक-आगम-सत्ताणि" के मद्रण के लिए संपूर्ण दव्यराशि प्राप्त हुई , उनका अत्यल्प परिचय यहां करेंगे । समुदाय-एकता के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हुए ये महात्मा समुदाय के साधु-साध्वीजी की आवश्यकताओकी पूर्ती के लिए भी प्रवृत्त रहेते है, प्राचीन-अर्वाचीन तीर्थो के जीर्णोद्धार एवं विकाश के लिए भी उत्साहित रहेते है, ज्ञान-क्षेत्र अछूता न रहे इसीलिए अनुमोदना, अनुदान एवं समय मिलने पर शास्त्र-वांचनमें भी रूचि रखते है | समुदाय के जरूरतमंद साध्वीजी भगवंतो के आवास का विषय हो या साध्वीजी के विहारमें मजदूर का वेतन चुकाना हो, ऐसे छोटे-छोटे कार्यों के प्रति भी उन का लक्ष्य रहेता है | दर्शन-शुद्धि के लिए जब उन्होंने समग्र भारतवर्ष के १०० साल तक के पुराने जिनालयो में १८ अभिषेक की प्रेरणा की, उस वक्त । लगभग सभी अभिषेक-सामग्री की द्रव्य-शुद्धि का ख़याल रखते हुए अपनी मेधावी बुद्धि का परिचय दिया था, साथमे अनुकंपा भाव से पुजारी या विधि करानेवाले को यत्किंचित् बहुमान प्रगट करते हुए कुछ धन-राशि प्रदान करवाई। | ऐसे बहुगुण-संपन्न महात्मा पूज्य आचार्यश्री हर्षसागर-सूरिजी को हम भावभरी वंदना करते हुए इस श्रुतकार्य का प्रारंभ करने जा रहे है | ... मुनि दीपरत्नसागर “कात्रेज]पूना, शंखेश्वर, कपडवंज, प्रभासपाटण आदि स्थानोमे आगममंदिर के प्रेरक, कर्मग्रंथ अभ्यासु, निस्पृह महात्मा पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्य श्री दौलतसागर-सूरीश्वरजी महाराज साहेब (एवं) अजातशत्रु, स्वाध्याय-रसिक, प्रशांतमूर्ती और अपने गुरु के प्रीतिपात्र परम पूज्य आचार्य श्री नंदीवर्धनसागर-सूरिजी महाराज साहेब इस पवित्र श्रुत-कार्यमे दोनो सूरिवरो का स्मरण करते हुए कोटि कोटि वंदना के साथ ......मुनि दीपरत्नसागर [१]

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