Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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आगम
भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [१], नियुक्ति: [१-६७], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १-१२]
(०१)
Prammam
'आयार' ऐकार्थाः तनिक्षेपाः
प्रत वृत्यंक [१-१२]
श्रीआचा-10 कुंजरो स्तम्भं आरोहगं वा एवमादि, अहवा किरियाजोगो आचालो, आचलितो खंधावारो आचलितं आसणमिति, भावे सो चेव रांग सूत्र-IAL | पंचविहो, कोहादि सव्वं अप्पसत्थं भावं चालेति कम्मबंधं आचारो, इयाणिं आगालो, जंवा उदगस्स णिष्णया व तलागं वा आगालो
भवति, अहवा आगलिता मेहा, भावे तु अयमेव नाणादि भावागालो, इयाणि आगारोन्दवेसु दवागारादि, अहवा रतणागरो समुद्रो, ॥३॥
भावे अयमेव नाणादियागागे, इदाणिं आसासो, तत्थ दवे गदिमादिएसु वट्टमाणस्स तरणं दीवोबा,अहवाऽऽसासो दरिसणतो फासओ य, दरिसणे संजत्तया वाणियगा समृद्दमझे कूलं दटुं आससंति, अहवा धातु(वाउ)पिसाया विलं पविट्ठा दिसामूढा बिलद्वारं, करिसगा| मेहं, पकणाणि वा ससाणि, माता गट्ठ पुत्तं, गम्भिणी पमूया पुत्तमुहं वा,स्यणत्थियां रयणागरं एवमादी, फासओऽवि मुच्छिओ तिसितो
वा तोयं धम्मत्तो चंदणं मारुतं वा एवमादि, भावासासो आयारो संसाराओ उत्तरण, इदाणिं आदरिसो, तत्थ दो दप्पणादि, भावे U आयारो, एस्थ करणिशं अकरणिजं च दरिसिजति । अंग चउविहं, तं चाउगिज्जे वष्णितं इहंपितं चेव । इदाणिं आचिणं, तत्थ दवे ||
गोणादीणं तणा सीहादीण पोग्गलं खित्नाचिण्णं वाहिएसु सत्तुगा कोंकणासु पेजा, काले जहा "सरसो चंदणको अग्पति उल्ला य गंधकासाई । पाडलसिरीस मल्लियपियंगु काले निदाहमि" ॥१॥ भावाइणं सबसाहूहि अयमेव नाणादियायारो मोक्खनिमित्तं | आइण्णो। इयाणि आयातो, तत्थ दवे जहा आयातो देवदत्तो, अहवा जातिस्सरकहासु सुवति अमुगभवाओ इम भवं आयातो, भावे गुरुपरंपरएण । इयाणि आमक्खो, तत्थ दवे निग्गंथादीणि मोइति भावे पच्छा विवदिओ मुबह सकम्माओ। इयाणि पबत्तणं, 'सधेसि आयारों' गाहा (८-६) सबतित्थगरावि आयारस्स अत्थं पढम बाइक्खंति, ततो सेसगाणं एकारसण्डं अंगाणं, ताए व परिचाडीए गणहरावि सुत्तं गुंथंति । इयाणि पदमंगति, किंनिमित्त आयारो पदम ठविओ?, एत्थ गाहा 'भायारो अंगाणं
दीप अनुक्रम [१-१२]
॥
३
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: । ...आचार शब्दस्य एकार्थका शब्दा:
[15]
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