Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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आगम
(०१)
प्रत
वृत्यंक
[१-१२]
दीप
अनुक्रम
[१-१२]
भाग-1 “आचार” - अंगसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:)
श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [-], निर्युक्ति: [१-६७], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक १-१२]
अर्हम् ॥
श्री आचारांगसूत्रचूर्णिः ।
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ॐ नमो वीतरागाय नमः सर्वज्ञाय || मंगलादीणि सत्याणि मंगलमज्झाणि मंगलावसाणाणि मंगल परिग्गहा य सिस्सा सत्थाणं अवग्गहेपायधारणासमत्था भवंति, एएण कारणेणं आदी मंगलं मज्झे मंगलं अवसाणे मंगलमिति, तत्थ अज्झयणकृतं आदीये जीवगहणं तदस्थित्तप्पसाहणं च, मज्झे मंगलं सम्मत्ता लोगसारग्गहणा, अंते मंगलं भगवतो गुणुकित्चणा, एयं अक्षयणकर्य, इदाणि सुत्तकयं भण्णति-आदीये सुयग्गहणा भगवतोरगहणा य, मज्छे से बेमि जे य अतीता अरहंता भगवंता' तहा 'से बेमि से जहावि हरे,' अंतेवि 'अमिणिबुडे अमाई य' एयस्त गहणा, तं पुण मंगलं चडविहं णाममंगलं ठवणामंगलं दवमंगल भावमंगलं, णामठवणाओ गयाओ, दव्वे सुत्थियादि भावे गंदी, सा चउविहा- नाम०ठवणा० द००, भाव० णामठवणाओ गयाओ, दब्वे संखबारसगाणि तूराणि, भावणंदी पंचविहं णाणं, सब्देसिपि परूवणं काऊणं सुयनाणेणं अहिग्गारो, कम्दा १, जम्हा सुयनाणे
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र -[०१], अंग सूत्र [०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: ...सूत्रस्य आदि-मध्य-अंत्य 'मंगल' कथनं
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