Book Title: Sabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Author(s): Thakurprasad Sharma
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 6
________________ दिगम्बरसम्प्रदाय । १ गन्धहस्तिमहाभाष्य-भगवत्समन्तभद्रस्वामिविरचित । श्लोक संख्या-८४००० । २ सर्वार्थसिद्धिटीका-श्रीमत्पूज्यपादस्वामिविरचित । श्लो० सं० ५५०० । ३ राजवार्तिकालंकार-श्रीमद्भट्टाकलंकदेवरचित । श्लो० सं० १६०००। . ४ श्लोकवार्तिकालंकार-श्रीमद्विानंदिप्रणीत । श्लो० सं० १८००० । ५ श्रुतसागरीटीका-श्रीश्रुतसागरसूरिरचित । श्लो० सं० ८००० । ६ तत्त्वार्थस्यसुखबोधिनीटीका-द्वितीय श्रुतसागरसूरिरचित । ७ तत्त्वार्थटीका-श्रीविबुधसेनाचार्यप्रणीत-श्लो० सं० ३२५० । ८ तत्त्वप्रकाशिकाटीका-श्रीयोगीन्द्रदेव । ९ तत्त्वार्थवृत्तिः-श्रीयोगदेव गृहस्थाचार्य । १ दुःखकी बात है कि, आज यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है, परन्तु आजसे सौवर्षके पहलेके प्रायः सम्पूर्ण बड़े २ विद्वानों और आचार्योंने इस ग्रन्थका अस्तित्व स्वीकार किया है, और उसके जगह २ प्रमाण दिये हैं। इस भाष्यके प्रारंभमें समन्तभद्रस्वामीने जो ११५ श्लोकोंमें मंगलाचरण किया है, उसे देवागमस्तोत्र अथवा आप्तमीमांसा कहते हैं । आप्तमीमांसापर श्रीमद्भट्टाकलंकने अष्टशती और श्रीमद्विद्यानन्दि स्वामिने अष्टसहस्री ऐसे दो भाष्य बनाये हैं, जिन्हें देखके बडे २ नैयायिक विद्वानोंको विस्मित होना पडता है । विद्वान् पाठक विचार करें कि, जिसके मंगलाचरण मात्रपर बडे २ कठिन भाष्य रच डाले गये, वह सम्पूर्ण ग्रन्थ कैसा गौरवशाली और विलक्षण न होगा ? । उदयपुर तथा जयपुरादि नगरोंके भंडारोंमें जैनपुस्तकालयों में गन्धहस्तिमहाभाष्यका अस्तित्व सुना जाता है। परन्तु उक्त भंडारोंके अध्यक्षोंके प्रमादसे अथवा हम लोगोंके दुर्भाग्यसे कहिये; आज उस अमूल्यरत्नकेदर्शन दुर्लभ हो गये । और बड़े खेदको बात है कि ऐसे २ ग्रन्थरत्नोकी शोधमें प्रयत्न करनेवाला भी आज कोई दृष्टिगत नहीं होता। २ समन्तभद्स्वामिका अस्तित्व विक्रमसंवत् १२५ के लगभग माना जाता है । आराधनाकथाकोषमें आपके जीवनकी एक प्रभावोत्पादक कथा मिलती है। ३ यह टीका मुद्रित हो चुकी है, और प्रायः सर्वत्र पुस्तकालयों में मिलती है। ४ पूज्यपादस्वामि नन्दिसंघके आचार्य थे । देवनन्दि और जिनेन्द्रबुद्धि ये दो नाम भी इन्हींके हैं । गणरत्न. महोदधिके कर्त्ताने आपका नाम चन्द्रगोमि भी बतलाया है। विक्रम संवत् ३०८ जेष्ठ सुदी १० को आपका जन्म हुआ था, ऐसा पट्टावलियों से प्रतीत होता है । जैनाभिषेक, समाधिशतक, चिकित्साशास्त्र और जैनेन्द्रव्याकरण आदि ग्रन्थ भी आपके बनाये हुए हैं। ५ विक्रमकी छठी शताब्दिके लगभग श्रीभट्टाकलंकदेवका जन्म खेट नामक नगरमें हुआ था। आप न्यायके अभूतपूर्व और अद्वितीय विद्वान् थे। राजा हिमशीतलकी सभा में एक बडे भारी बौद्धाचार्यको जिसकी ओरसे उसकी तारा नामक देवी बाद करती थी, आपने परास्त किया था । यह कथा सर्वत्र प्रसिद्ध है । अकलंकदेव देव. संघके आचार्य थे, और भट्ट आपका पद था । अकलंक नामके और भी अनेक आचार्य हो गये है । परन्तु अष्टशती, बृहत्रयी, लघुत्रयी आदि प्रसिद्ध ग्रन्थ भट्टाकलंकदेवके ही बनाये हुए हैं। ६ श्रीविद्यानन्दिस्वामी वि० संवत् ६८१ के लगभग हुए हैं । आपका बनाया हुआ अष्टसहस्री ग्रन्थ नैयायिक विद्वानोंके गर्वको खर्व करदेनेवाला है। ___७ श्रीश्रुतसागरसूरि वि. सं. १५५० में वर्तमान थे। यशस्तिलकचम्पू महाकाव्यकी यशस्तिलकचन्द्रिका टीकाके कर्ता भी आप ही हैं। < Bhandarkar 5 th 1096 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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