Book Title: Sabha Shrungar
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Nagri Pracharini Sabha Kashi

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Page 18
________________ ( १३ ) ६१७२)। पृष्ठ ३०३ पर लड्डुश्रो के दो वर्णक है और पृष्ठ ३०४ पर सूखडी. या मिठाई के तीन वर्सकों में अनेक नाम भाषा के इतिहास की दृष्टि से रोचक है. जैसे इमरती के लिये पुराना नाम मुरकी था जो दो वर्णकों में पढ़ा है और पद्मावत में भी प्रयुक्त हुआ है । भारतीय भोजन और पकवानों का इतिहास अभी नहीं लिखा गया यद्यपि वैदिक युग से लेकर आज तक की तत्सम्बन्धी सामग्री बहुत अधिक है। उदाहरण के लिये इन सूचियों में बरसोला शब्द कईबार आया है। यह एक प्रकार का खाँड का लड्डू हता था जो पानी में डालते ही गल नाता था। नैषधचरित में इसे वर्षांपल कहा है। अब इसका चलन कम हो गया है। पृष्ठ ३१० पर फल-मेवों की सूची में भी बिजोरा के साथ बरसोला नाम आया है। इससे ज्ञात होता है कि मिठाई के अतिरिक्त नीबू की तरह के किसी फल के लिये भी यह शब्द प्रयुक्त होने लगा था । सुगन्धित वस्तुओं की सूची में मोगरेल, चॉपेल, नाचेल, केवडेल, करणेल, इन पॉचो शब्दों का अन्त का 'एल' प्रत्यय तैल-वाचक है । ये शब्द मोगरा चम्पा, नाही, केवडा और करना (एक प्रकार का श्वेत पुष्य ) नामक फूलों से सुवासित तेलों के नाम थे। पृ० ३११-३१४ पर वस्त्रों के पाँच वर्णक अत्यन्त रोचक है। इनमें पाँचवीं सूची में लगभग १४० वस्त्रों के नाम हैं जो ऊपर उल्लिखित वर्णकसमुच्चय की सूची के समान महत्त्वपूर्ण हैं। इन सूचियों में भैरव शब्द कई बार आया है जो श्राईन-अकबरी के अनुसार एक वस्त्र का नाम था। बीसलदेव रासो मे भैरव की चोली का वर्णन है, जो आइन से लगभग २०० वर्ष पुराना उल्लेख होना चाहिए। मसज्जर अरबी मुशज्जर का रूप है जिस पर शजर या पेड़-पौधों की बूटियों बनी रहती थीं। पोपटिया, जैसा नाम से प्रकट है, तोते की बूटी से छपे वस्त्र को कहते थे। नारी कुजर वस्त्र का नाम भी नारी कुमर भाँति की छपाई के कारण ही पड़ा था। कमलवन्ना ( कमल के रंग का), मूंगवन्ना (मुंगिया रंग का ), गंगाजल, चक्रवटा (चक्र की छाप से छपा हुआ ), सेजी (शत्रुजय, सौराष्ट्र का बना हुआ ), पाम्हड़ी ( स० पद्मपटी, कमल बूटी से छपा हुश्रा ), हंसवेडि ( हसपटी), गनवेडि ( गजपटी), प्रवालिया (मंगिया लाल रंग का वस्त्र), कोची (कोच बिहार का बना हुआ), गौडीया (गौड, बगाल के वस्त्र सभवतः जिन्हें जायसी ने पडुआ के बने पंडुवाए वस्त्र कहा है ), सुनारगामी कपूरधूली, लोवडी ( स० लोमपटी ) पट्टकूल, मेघाडम्बर, खीरोदक, पैठाणी (पैठण या प्रतिष्ठान का बना हुआ) आदि नाम सस्कृत प्राकृत परम्परा के हैं जो मध्यकालीन संस्कृति में सुविदित रहे होंगे। आगे चलकर

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