Book Title: Sabha Shrungar
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Nagri Pracharini Sabha Kashi

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Page 16
________________ ( ११ ) मणिमय कुम्भ, रत्नमय तोरण, बन्दनमाला, छत्र, पुतली, मगरमुख, ध्वजा, पीठ, सिंहासन, पादपीठ, आतपत्र छत्र, गँवर, भामण्डल, धर्मचक्र, देवदुन्दुभि, इन्द्र-ध्वज आदि पारिभाषिक शब्दावली ध्यान देने योग्य है । इसके बाद जिनवाणी, जिनोपदेश, तपभावना, धर्म माहात्म्य, युगलिया सुखवर्णन, श्रावक आदि के वर्णक है । पृष्ठ २११-२१२ पर ८४ गच्छो के नामो की सूची है और अन्त मे चतुर्दश स्वप्नी के वर्णन हैं । १४ वे स्वप्न मे निधूम अग्निशिखा को सदान्वाला युक्त ऊर्ध्वमुखी धक-धक करता हुआ वैश्वानर कहा गया है । सन्ति मे लक्ष्मी देवी और उनके पासरोवर में खिले मुख्य कमल का बहुत ही भव्य वर्णन है । विभाग ६ मे सामान्य नीतिपरक वर्णको का संग्रह है। यह समस्त प्रकरण अत्यन्त सुपाठ्य और बुद्धि की चतुराई से भरा हुआ है । द्रामड़ का सकेत शेरशाह-अकबरकालीन मुद्रा से है ( कहाँ द्रम्य या दाम कहाँ रुपया)। पृष्ठ २५६ पर चचल मन के वर्णक मे उपमानो की लडी पढते हुए चित्त प्रसन्न हो जाता है-चञ्चल मन ऐमा है जैसे हाथी का चञ्चल कान, पीपल का पान, संव्या का बान, या दुहागिन ( परित्यक्ता ) का मान, मिट्टी का घाट, वादल की छॉह, कापुरुप की बॉह, तृणो की आग, दुर्जन का राग, पानी की तरग और पतग ( तकडी) का रग | पृष्ठ २५८-५९ पर विशिष्ट पदार्थों के वर्णक मे वस्तुयो का उल्लेख ध्यान देने योग्य है-सोरठी गाय, मरहठी वेसर श्रावू तणउ देवडो (श्रावू के जैन मन्दिर ), पाटण तणो सेवडो (पाटन के श्वेताम्बर यति ), वाराणसीउ धूर्त । इसी प्रसग में ३६० प्रकार के किरानों को उत्तम और ३६ नाणक को अच्छा कहा गया है। ३६० किरानो की सूची साडेसरा के वर्णक-समुच्चय के परिशिष्ट २ मे सौभाग्य से बच गई है। ३६ नाणक या सिक्कों को श्रेष्ठ मानने का कारण सभवत यह था कि ३६ दाम या तॉवे के पैसों का एक चाँदी का रुपया माना जाता था । विशेष पदार्थों मे ( २५६-२६० ) निम्नलिखित ध्यान देने योग्य हैं - चतुराई गुजरात की, वासा हिन्दुस्तान का, चूडा हाथी दाँत का, चौहट्टो की भीड दिल्ली की, देवल बाबू का, रूपा ( चॉटी) जावर का इत्यादि । अपने वर्ग में विशिष्ट पदार्थों का उल्लेख करते हुए वस्त्रों में नेत्र वस्त्र की प्रशसा की गई है। 'भला क्या' इस सूची में भी अनेक उल्लेख बढिया है, जैसे--कच्छ की घोड़ी भली, पाग खाँगी (टेढी) भली, सेज चित्रशाली भली, कोरणी कोरी भली ( अर्थात् नकाशी या उकेरी चारो ओर गोल कोरी या उकेरी हुई नक्काशी अच्छी समझनी चाहिए ।

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