Book Title: Rushimandal Vrutti Purvarddha
Author(s): Shubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidyashala Ahmedabad

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Page 8
________________ भाभी फटारसनागर सरि शाम मदिर भी बधाबीर जैन आराधना इन्द, कोपा श्री युगादिदेवाय नमः श्री ऋषिमंडलवृत्ति लाषांतरसहित ___ (पूर्वार्द्ध) प्रथम टीका करनार श्री शुन्नवईनगणी व श्लोकवमें मंगलाचरण करे . ( आख्यानकी वृत्तम्.) योऽजयगादौ शिवशुधमार्गप्रकाशकत्वाइविरेव साक्षात् ॥ गोनिः स्वकीयैः प्रहरंस्तमांसि, स नाजिनूरिविनूतये वः ॥१॥ शब्दार्थ-युगादिकने विषे जे पोतानी वाणीवमे अज्ञानरूप अंधकारनो नाश करता उतां कल्याणकारी शुभ मार्गने प्रकाश करवायी साक्षात् सूर्यरूपज श्रयेला बे, ते श्री नान्निराजाना पुत्र (ऋषनदेव प्रस्तु) तमारी म्होटी संपत्तिने अर्थे थान ॥१॥ चित्रं प्रदत्ते विजयांगजोऽपि, प्रणेमुषां यो विजयाभूतानाम् ॥ जिनो वितीयोऽपि जनेऽक्तिीयः, श्रिये स नूयाद जितप्रभुर्वः॥॥ शब्दार्थ-विजयारामीना पुत्र एवाय पण जे अन्नु, विजयने विषे अनुत एवा नमन करनारा जनोने आश्चर्य करे . वली बीजा जिनेश्वर प्रन्नु उतां पण । मनुष्यने विषे अश्तिीय (एकज); एवा ते श्री अजितनाथ प्रन्नु तमारी संपत्तिने अर्थे धान ॥२॥ निजावतारेऽपि जगऊनानां, कृता प्रशांतिर्विकृतामयानां ॥ येनार्थिसार्थेष्टसुरज्मालः, स शांतिदेवस्तनुतां हितानि ॥३॥ शब्दार्थ-जेमणे पोताना अवतारने विषे पण महा नयंकर एवा रोगवा-दाला जगत्ना मनुष्योने शांति करी. वली याचकोना समूहने इचित वस्तु आप- IT वामां कल्पवृक्ष समान कांतिवाला ते शांतिनाथ ग. . 2

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