Book Title: Rushimandal Vrutti Purvarddha
Author(s): Shubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidyashala Ahmedabad
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(६) झषिमंमलत्ति-पूर्वार्ध. टलामां हाथीना कलेवरथी दबाइ रहेला पेला सर्प तेने मंश दीधो, आ प्रमाणे . तेन त्रणे मृत्यु पाम्या. पठी कोइ एक शीयाल ते त्रणेने पमेला जोश हर्षथी विचार करवा लाग्यो के, “अहो! आ हाथीतो म्हारे जीवित पर्यंतनीआजीविका थ. वली आ मनुष्य अने सर्प पण म्हारे केटलोक काल चालशे; माटे तेननु रक्षण करीने हवणा आ धनुष्यना बंधनने लक्षण करूं.” आवो विचार करीने ते शीयाल जेटलामां धनुष्यनी दोरीनुं नक्षण करवा लाग्यो तेटलामां बूटी गयेला अर्थात् पहोला अश् गयेला कामगना बेमावमे करीने गलाने विषे विधायेलो ते शीयाल तत्काल मृत्यु पाम्यो. (स्वयंबुः मंत्री कहे के,) ए प्रमाणे जे पुरुष मनुप्यसुखमां आसक्त थ परलोकने विषे अवलामुखवालो थाय नेते आशीयालनी पेठे अन्यजन्मने विषे अत्यंत दु:खी थाय .हे राजन् ! वली सांजलो. आपणे ज्यारे नंदनवनने विषे गया हता त्यारे देवतानने दीग हता. ते वखते तेन्मांधी एक देवताए आपने कह्यु के, “हे नूपति ! हुँअतिबल नामनो त्हारो पितामह (दादो) चारित्रने पालीने बीजा देवलोकमां देवता पणे नत्पन्न अयोबु; माटे हे वत्स ! निरंतर जिनधर्मने विषे म्होटो नद्यम कर. (स्वयंबु कहे के,) हे नृपेंद! जो आ म्हारं वचन आपने स्मरणमां आवतुं होय तो निःशंसय परलोक , एम जाणो.” पठी “हे मंत्री! ते ९ जाणुं." एम महाबल राजाए कडं एटले स्वंबु मंत्रीए नूपतिने जैनधर्ममां स्थिर करवाने माटे फरीश्री कह्यु के, “हे नूप! पूर्वे आपना वंशने विष कुरुचं नामे राजा भयो हतो. तेने कुरुमती नामनी स्त्रीयकी नत्पन्न श्रयेलो हरिचंड नामे पुत्र हतो. ए कुरुचं राजा इष्ट होवाथी नाना प्रकारना घोर पापकर्म आचरतो; तेथी तेने मृत्युकाल प्राप्त भयो एटले पापना नदयथी गायन गालो समान लाग्यु; सुरूप कुरूप समान जणायु; मधुर आहार कमवा सरखो लाग्यो;गो. शीर्षनो लेप ऽगंधरूप थयो अने कोमल एवीय पण शय्या गेलाना अग्नि समान जणा. वली तेने कोमल स्पर्शवाली अन्य वस्तुन पण अत्यंत कांटारुप यश पमी. या प्रमाणे महा दुःखी श्रयेलो ते राजा कालधर्मने पाम्यो. पगी तेनो पुत्र हरिचंड राज्यासन नपर वेठगे. एकदिवस हरिचंड संसारथकी लय पामतो तो पोताना सुबुद्धि मंत्रीने कदेवा लाग्यो के, "हे सुवुद्धि मंत्री ! मने नत्तम ध. र्म संन्नलाव." ते नपरथी प्रधान तेने केवलज्ञानी पासे लश् गयो. त्यां हरिचंद
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