Book Title: Rugvediya Sandhya Vandanam
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 17
________________ प्राणयाम: [2] ॐ प्रणवस्य ।। अमृतं ब्रह्म भूर्भुवस्वरोम् ॥ गायत्री जपः (11) (11.1) [By uttering these verses one has to touch the respective organs] ॐ तत्सवितुरंगुष्ठाभ्यं नमः [ thumb finger] ॐ वरेण्यं तर्जनीभ्यां नमः | [index finger] करन्यासः ॐ भर्गो देवस्य मध्यमाभ्यां नमः । [ middle finger] ॐ धीमही अनामिकाभ्यां नमः । [ring finger] ॐ धीयो यो नः कनिष्ठिकाभ्यां नमः | [small finger] ॐ प्रचोदयात् करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः [front back side of the hands] षडंगन्यासः (11.2) ॐ तत्सवितुर्हृदयाय नमः (heart) । ॐ वरेण्यं शिरसे स्वाहा | [centre portion of the head] ॐ भर्गोदेवस्य शिखायैवौषट् । [back portion of the hair of the head] ॐ धीमहि कवचाय हुम् । [both shoulders] ॐ धीयो यो नः नेत्राभ्यां वषट् । [both eyes] ॐ प्रचोदयात् अस्त्रायफट् | [clap ] ॐ भूर्भुवःस्वरोम् । .......................... आगच्छ वरदे देवी जपे मे सन्निधौ भव । गायंतं त्रायसे यस्माद्गायत्री त्वं ततः स्मृता ॥ (11.3) [" Hey, Gayatri, You are very special, please come and be present in me; You are protecting all of us and You are well known as Gayatri, whom I am praying."] ध्यानम् ................... अस्य श्री गायत्रीमंत्रस्य सवितृनामक श्री लक्ष्मीनारायणो देवता । श्री लक्ष्मीनारायण प्रसादसिद्ध्यर्थे यथाशक्ति जपे विनियोगः ॥ (114) ध्यायेत्सदा सवितृमंडलमध्यवर्ती नारायणः सरसिजासनीविष्टः । केयूरवान् मकरकुंडलवान् किरीटी हारी हिरण्मयवपुः धृत शंखचक्रः ॥ भारतीरमण मुख्यप्राणांतर्गत सवितृनामक श्री लक्ष्मी १७

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