Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 11
________________ रिट्ठणेमिचरिउ घत्ता कण्हु-वि कहिवि(कहइ) कहाणउ गरहो चिराणउ पूयण-विहलीकरणउ । रिट्ठ-कंठ-संकोडणु अज्जुण-मोडणु गिरि-गोवद्धण-धरणउं॥१० [२] जलयर-आऊरणु अहि- यणु सारंग-पमाण-समायरणु कालिंदी-दहि कालिय-दमणु मुट्ठिय-चाणूर-कंस-बहणु जीवंजस-परियण-सथवणु मगहाहिव-साहण-पट्ठवणु जायत्र-कुल-कोडी-णिग्गमणु देवय-परिरक्खणु वण-गमणु जिण-जम्मणु रुप्पिणि-अवह रणु दप्पुद्धर-चेदि-राय-मरणु महएवी-गोवी-परिणयणु वम्मह-उप्पत्ति पुणागमणु मायंग-विसेस-वेस-करणु णिय-माउल-कण्णा-अवहरणु अणिरुद्ध-कुमारहो ओयरणु संवुब्मउ संव-समायरणु धत्ता रयणिहिँ कहिउ कहाणउं ताम बिहाणउं थिउ अत्थाणे जणद्दणु । परिमिउ वंधव-सयहि विहसिय वयणेहि सुरेहि णाई संकंदणु ।। ९ तहि अवसरे पभणइ दुमय-सुय णारायण-गेमि-हलाउहहो अणिरुद्ध-सच्च-पिहु-पज्जुणहो तुम्हइ-मि मज्झु ण परित्त किय सुहु दुक्खु चविज्जइ केण सहं दूसासणु अज्ज-वि जियइ जहिं कि भीमहो गरुय-गयासणिए तहिं अवसरे जेहिं ण जुझियउ इंदीवर-दीहर-दाम-भुय सिणि-सच्चइ-णिसढ-दसारुहहो उत्तर-विराड-धट्ठज्जुणहो पंडव अवहेरि करेवि थिय ४ केस-गहु हियवउ डहइ महु वोल्लिज्जइ केसव काई तहिं बलु आयह सव्वह वुझियउ ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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