Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1 Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani Publisher: Prakrit Text Society AhmedabadPage 14
________________ तेत्तीसमो संधि गउ पासु ताम दुजोहणहो दृण्णय-दुज्जस-कलि-रोहणहो एत्तहे-वि णियंतह जायवहं सिरि-रामालिंगिय-अवयवह तत्रतणय-जमल-भीमज्जुणहं उत्तर-विराड-धट्टज्जुणहं दुमएण पुरोहिउ पट्टविउ दूयत्तणु सयल वि सिक्खविउ धत्ता गउ गयउरु कुरु-राउले णरवर-संकुले पइसारिउ पडिहारें। वर-वायरणभंतरे सुत्त-णिरंतरे सिसु(१) जिह पच्चाहारें ॥९ [८] धयरट्टे पुच्छिउ दूय कहे किं कुसलाविग्घेहि आउ पहे किं कुसल जुहिट्ठिल-राणाहो भीमहो भुवणुण्णय-माणाहो किं कुसलु स-णउलहो अज्जुणहो सुर-भुयणुच्छलिय महा-गुणहो किं कुसलु सव्व-लहुयाराहो सहएबहो अणुवय-धाराहो कि कुसलु सुहद्दहे दोवइहे उत्तरहे पवइढिय-उण्णइहे अहिमण्णु-कुमारहो किं कुसलु जो माय-पियंधि-कमल-भसलु किं कुसलु राम-णारायणहं अवरह-मि अणेयहं सज्जणहं तो चवइ दुउ धयरट्ट सुणि सव्वह-मि कुसलु णियमेण मुणि ८ धत्ता कुसलु जुहिट्ठिल-रायहो सयण-सहायहो णय-विक्कम-संपण्णहो । पर महि-अद्भु ण देंतहो अवगुण लेतहो अकुसलु कउरव-सेण्णहो ॥९ णिय-वयणु पडीवउ संवरइ धयरट्ट हिट्ठिलु संभरइ तुहु पंड विउरु तिहिं भेउ ण-वि पणवइ गंगेय-दोण-किव-वि अहिवायणु सव्वहं पट्टविउ जं जें व आसीसु परिट्ठविउ तं तेंव धयरट्ठ समल्लवहो सुहु जीवहो कुरुब-णराहिवहो ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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