Book Title: Rajasthan ke Prakrit Swetambar Sahityakar
Author(s): Devendramuni Shastri
Publisher: Z_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf

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Page 1
________________ 0 श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री ०००००००००००० ०००००००००००० --0--0--0--0--0-0-2 राजस्थान की ऊर्वरा भूमि में जैन संस्कृति एवं साहित्य का जो अंकुरण एवं पल्लवन हुआ, उसके अमृत फलों से १ १ सम्पूर्ण भारत एवं विश्व लाभान्वित होता रहा है। प्रस्तुत में प्राकृत भाषा के श्वेताम्बर साहित्यकारों का । ३ अधुनातन परिचय दिया गया है। राजस्थान के प्राकृत श्वेताम्बर साहित्यकार भारतीय इतिहास में राजस्थान का गौरवपूर्ण स्थान सदा से रहा है । राजस्थान की धरती के कण-कण में जहाँ वीरता और शौर्य अंगड़ाई ले रहा है, वहाँ साहित्य और संस्कृति को सुमधुर स्वर लहरियाँ भी झनझना रही हैं । राजस्थान के रण-बांकुरे वीरों ने अपनी अनूठी आन-बान और शान की रक्षा के लिए हंसते हुए जहाँ बलिदान दिया है, वहाँ वैदिकपरम्परा के भावुक भक्त-कवियों ने व श्रमण संस्कृति के श्रद्धालु श्रमणों ने मौलिक व चिन्तन-प्रधान साहित्य सृजन कर अपनी प्रताप पूर्ण प्रतिभा का परिचय भी दिया है । रणथम्भौर, कुम्भलगढ़, चित्तौड़, भरतपुर, मांडोर, जालोर जैसे विशाल दुर्ग जहाँ उन वीर और वीराङ्गनाओं की देश-भक्ति की गौरव-गाथा को प्रस्तुत करते हैं, वहाँ जैसलमेर, नागोर, बीकानेर, जोधपुर, जयपुर अजमेर, आमेर, डुंगरपुर प्रभृति के विशाल ज्ञान-भंडार साहित्य-प्रेमियों के साहित्यानुराग को अभिव्यञ्जित करते हैं। राजस्थान की पावन-पुण्य भूमि अनेकानेक मूर्धन्य विद्वानों की जन्मस्थली एवं साहित्य-निर्माण स्थली रही है। उन प्रतिभा-मूर्ति विद्वानों ने साहित्य की विविध विधाओं में विपुल साहित्य का सृजन कर अपने प्रकाण्ड पाण्डित्य का परिचय दिया है। उनके सम्बन्ध में संक्षेप रूप में भी कुछ लिखा जाय, तो एक विराट्काय ग्रन्थ तैयार हो सकता है, मुझे उन सभी राजस्थानी विद्वानों का परिचय नहीं देना है, किन्तु श्वेताम्बर परम्परा के प्राकृत साहित्यकारों का अत्यन्त संक्षेप में परिचय प्रस्तुत करना है । श्रमण संस्कृति का श्रमण घुमक्कड़ है, हिमालय से कन्याकुमारी तक और अटक से कटक तक पैदल घूम-घूमकर जन-जन के मन में आध्यात्मिक, धार्मिक व सांस्कृतिक जागृति उद्बुद्ध करता रहता है। उसके जीवन का चरम व परम लक्ष्य स्व-कल्याण के साथ-साथ पर-कल्याण भी रहा है। स्वान्तःसुखाय एवं बहुजनहिताय साहित्य का सृजन भी करता रहा है। श्रमणों के साहित्य को क्षेत्र विशेष की संकीर्ण सीमा में आबद्ध करना मैं उचित नहीं मानता। क्योंकि श्रमण किसी क्षेत्र विशेष की धरोहर नहीं है । कितने ही श्रमणों की जन्म-स्थली राजस्थान रही है, साहित्य-स्थली गुजरात रही है । कितनों की ही जन्म-स्थली गुजरात है, तो साहित्य-स्थली राजस्थान । कितने ही साहित्यिकों के सम्बन्ध में इतिहास वेत्ता संदिग्ध हैं, कि वे कहाँ के हैं, और कितनी ही कृतियों के सम्बन्ध में भी प्रशस्तियों के अभाव में निर्णय नहीं हो सका कि वे कहाँ पर बनाई गई हैं। प्रस्तुत निबन्ध में मैं उन साहित्यकारों का परिचय दूंगा जिनकी जन्म-स्थली राजस्थान रही है या जिनकी जन्म-स्थली अन्य होने पर भी अपने ग्रन्थ का प्रणयन जिन्होंने राजस्थान में किया है। श्रमण-संस्कृति के श्रमणों की यह एक अपूर्व विशेषता रही है कि अध्यात्म की गहन साधना करते हुए भी उन्होंने प्रान्तवाद, भाषावाद और सम्प्रदायवाद को विस्मृत कर विस्तृत साहित्य की साधना की है। उन्होंने स्वयं एकचित होकर हजारों ग्रन्थ लिखे हैं, साथ ही दूसरों को भी लिखने के लिए उत्प्रेरित किया है। कितने ही ग्रन्थों के अन्त में ऐसी प्रशस्तियाँ उपलब्ध होती हैं, जिनमें अध्ययन-अध्यापन की लिखने-लिखाने की प्रबल प्रेरणा प्रदान की गई है । जैसे OURCORRD Jam Education international For Private Personal use only ___www.jainelibrary.org

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