Book Title: Rajasthan ke Prakrit Swetambar Sahityakar
Author(s): Devendramuni Shastri
Publisher: Z_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf

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Page 6
________________ राजस्थान के प्राकृत श्वेताम्बर साहित्यकार | ४६१ से उन सभी ग्रन्थकारों का परिचय देना सम्भव नहीं है। श्रमण हजारीमल जिनकी जन्मस्थली मेवाड़ थी, उन्होंने 'साहु गुणमाला' ग्रन्थ की रचना की थी। जयमल सम्प्रदाय के मुनि श्री चैनमलजी ने भी श्रीमद् गीता का प्राकृत में अनुवाद किया था। पण्डित मुनि श्री लालचन्दजी 'श्रमणलाल' ने भी प्राकृत में अनेक स्तोत्र आदि बनाए हैं। पं० फूलचन्द्रजी महाराज 'पुफ्फ भिक्खु' ने सुत्तागमे का सम्पादन किया और अनेक लेख आदि प्राकृत में लिखे हैं । राजस्थान केसरी पण्डित प्रवर श्री पुष्कर मुनिजी महाराज ने भी प्राकृत में स्तोत्र और निबन्ध लिखे हैं । आचार्य श्री घासीराम जी आचार्य घासीलालजी महाराज एक प्रतिभासम्पन्न सन्त रत्न थे । उनका जन्म संवत् १९४१ में जसवन्तगढ़ (मेवाड़) में हुआ उनकी मां का नाम विमलाबाई और पिता का नाम प्रभुदत्त था । जवाहिराचार्य के पास आर्हती दीक्षा ग्रहण की। आपने बत्तीस आगमों पर संस्कृत भाषा में टीकाएँ लिखीं। और शिवकोश नानार्थ उदयसागर कोश, श्रीलाल नाममाला कोश, आर्हत् व्याकरण, आर्हत् लघु व्याकरण, आर्हत सिद्धान्त व्याकरण, शांति सिन्धु महाकाव्य, लोंकाशाह महाकाव्य, जैनागम तत्त्व दीपिका, वृत्तबोध, तत्त्व प्रदीप, सूक्ति सँग्रह, गृहस्थ कल्पतरु, पूज्य श्रीलाल काव्य, नागाम्बर मञ्जरी, लवजीमुनि काव्य, नव-स्मरण, कल्याण मंगल स्तोत्र, वर्धमान स्तोत्र आदि संस्कृत भाषा में मौलिक ग्रन्थों का निर्माण किया । तत्त्वार्थ सूत्र, कल्प सूत्र और प्राकृत व्याकरण आदि अनेक ग्रन्थ प्राकृत भाषा में भी लिखे हैं । अन्य अनेक सन्त प्राकृत भाषा में लिखते हैं । आचार्य श्री आत्माराम जी श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के प्रथम आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज प्राकृत संस्कृत के गन विद्वान और जैन आगमों के तलस्पर्शी अध्येता थे । आपका जन्म पंजाब में हुआ, बिहार क्षेत्र भी पंजाब रहा । प्रस्तुत लेख में विशेष प्रसंग न होने से आपकी प्राकृत रचनाओं के विषय थे अधिक लिखना प्रासंगिक नहीं होगा, पर यह निश्चित ही कहा जा सकता है कि आपने प्राकृत साहित्य एवं आगमों की टीकाएँ लिखकर साहित्य भण्डार की श्री वृद्धि की है । आपके शिष्य श्री ज्ञानमुनि भी प्राकृत के अच्छे विद्वान हैं । तेरापन्थ सम्प्रदाय के अनेक आधुनिक मुनियों ने भी प्राकृत भाषा से लिखा है 'रगवालकहा' चन्दनमुनि जी की एक श्रेष्ठ रचना है। राजस्थानी जैन श्वेताम्बर परम्परा के सन्तों ने जितना साहित्य लिखा है, उतना आज उपलब्ध नहीं है कुछ तो मुस्लिम युग के धर्मान्धशासकों ने जैन शास्त्र मण्डारों को नष्ट कर दिया और कुछ हमारी लापरवाही से चूहों, दीमक एवं शीलन से नष्ट हो गये । तथापि जो कुछ अवशिष्ट है, उन ग्रन्थों को आधुनिक दृष्टि से सम्पादित करके प्रकाशित किये जायें तो अज्ञात महान साहित्यकारों का सहज ही पता लग सकता है । १ श्री चन्द्रकृत रत्न करण्ड २ पाटण संघवी के में जैन मण्डार की वि० सं० १४६७ की हस्तलिखित ताड़पत्रीय पोथी खण्ड २, पत्र ३०० ३ (क) उपदेश पद मुनि श्री चन्द्रसूरि की टीका वि० सं० १९७४ (ख) गणधर सार्धशतक श्री सुमतिगणिकृत वृत्ति (ग) प्रभावक चरित्र रंग वि० सं० १३३४ (घ) राजशेखरकृत प्रबन्धकोष वि० सं० १४०५ ४ समदर्शी अचार्य हरिभद्र, ०६ 1 'करोनाम भट्टो तर गंगा नाम भट्टिणी तीसे हरिमदो नाम पंडिओ पुत्तो कहावली पत्र ३०० ६ एवं सो पंडितगव्वमुव्वहमाणो हरिभद्दो नाम माहणो ।' ७ प्रभावक चरित्र शृंग ६, श्लोक ८ जैन साहित्य संशोधक वर्ष १, अंक १ 5 YAM 000000000000 pho - 000000000000 0000000000 $.87/

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