Book Title: Rajasthan ke Madhyakalin Prabhavaka Jain Acharya Author(s): Saubhagyamuni Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf View full book textPage 4
________________ साध्वारत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ आचार्य रत्नप्रभसूरि भी मेवाड़ के एक महान आचार्य हो गये हैं । इनकी एक प्रशस्ति जो महारावल तेजसिंह के समय लिखी गई थी, चित्तौड़ के पास घाघंसे की बावड़ी में लगी हुई है । इसकी रचना १३२२ कार्तिक कृष्णा एकम रविवार को हुई थी । इसमें तेजसिंह के पिता जेवसिंह द्वारा मालवा, गुजरात, रूक और सांभर के सामन्तों को पराजित किये जाने का उल्लेख है । इन्हीं की एक प्रशस्ति चीरवा गांव में उपलब्ध है जो १३३० में लिखी गई हैं । " ५१ श्लोक है । इसमें जेत्रागच्छ के आचार्यों के नामों का उल्लेख है । साथ ही गुहिल वंशी बाप्पा के वंशज समरसिंह आदि के पराक्रम का वर्णन है । 3 बारहवीं शताब्दी के प्रभावक आचार्यों में आचार्य नेमीचन्द सूरि का नाम बहुत प्रसिद्ध है । ये अद्भुत विद्वान वक्ता और कवि मानस महापुरुष 1 saat 'taण मणिकोस', उत्तराध्ययन वृत्ति (उत्तराध्ययन की सुखबोधा टीका) धर्मोपदेश कुलक आदि रचनाएँ बड़ी प्रसिद्ध हैं । लेखक ने इन ग्रन्थों में दीर्घ समास पदावली का प्रयोग किया। काव्य की रोचकता में कहीं भी बाधक नहीं है । इनके काव्य में शील, संयम, तप आदि उदात्त गुणों का उत्कर्ष - पूर्ण वर्णन पाया जाता है ।" इसी शताब्दी के एक और अत्युत्तम महापुरुष हो गये हैं धनेश्वर सूरि ! जिन्होंने प्रसिद्ध ग्रन्थ सुरसुन्दरी चरियम प्राकृत में पद्यमय लिखा । रचना प्रौढ़ विशाल और सुसंस्कृत है । इसमें नैतिक तत्त्वों के साथ-साथ कथात्मकता का सुन्दर सुमेल है । इसमें लोक जन-जातियाँ जैसे आभीर, श्वपच आदि के उत्थान का सुन्दर वर्णन पाया जाता है । इस ग्रन्थ को लेखक ने चन्द्रावती नगरी में बैठ कर लिखा है । " 1 पन्द्रहवीं शती के महानतम विद्वान आचार्यों में रामकीर्ति भट्टारक धर्मकीर्ति, जिनोदयसूरि, भट्टारक सकलकीर्ति आदि प्रमुख हैं । जयकीर्ति के शिष्य रामकीर्ति बड़े विद्वान पुरुष थे । इनकी लिखी एक प्रशस्ति चित्तौड़ के समिद्धेश्वर महादेव के मन्दिर में लगी है । २८ पंक्तियों की इस प्रशस्ति में कुमारपाल के चित्तौड़ आने का वर्णन है । प्रशस्ति छोटी किन्तु महत्वपूर्ण हैं । " भट्टारक सकलकीर्ति आदिपुराण- उत्तरपुराण महान ग्रन्थों के रचयिता पन्द्रहवीं शती के श्रेष्ठतम आचार्य थे । इनकी २६ रचनाएँ उपलब्ध हैं । इन्होंने नेनवा के भ० पद्मनंदि के पास अध्ययन किया । इनका जन्म १४४३ तथा स्वर्गवास १४६९ में हुआ। ये बड़े प्रभावक आचार्य थे। इनका बिहारी लाल जैन ने एक शोध ग्रन्थ 'भट्टारक सकलकीर्ति : एक अध्ययन' लिखा । इन्होंने जूनागढ़ में एक मूर्ति की प्रतिष्ठा भी कराई । " भट्टारक भुवनकीर्ति, ब्रह्मजिनदास, भ० शुभचन्द्र भट्टारक प्रभाचन्द्र आदि बड़े प्रभावक और रचनाकार आचार्य हो गये हैं । जिनका परिचय हमें नेमीचन्द्र शास्त्री कृत संस्कृत काव्य के विकास में 1. मेवाड़ का प्राकृत अपभ्रंश एवं संस्कृत साहित्य, अम्बालाल जी म० अभिनन्दन ग्रन्थ - ले० डॉ० प्रेमसुमन जी । 2. उपर्युक्त । 3. वीर विनोद भाग 1 पृष्ठ 389 4. शास्त्री, नेमीचन्द - प्राकृत भाषा एवं साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास; जैन, जगदीशचन्द्र - प्राकृतिक साहित्य का इतिहास । 5. नेमीचन्द्र शास्त्रीकृत- प्राकृत भाषाएँ व साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन । 6. ........में० प्रा० अ० स० सा० / अ० ग्र० डा० प्रेम सुमन | 7. जैन भण्डार्स इन राजस्थान पु० 239 २१४ | पंचम खण्ड : सांस्कृतिक सम्पदा www.jaPage Navigation
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