Book Title: Rajasthan ke Madhyakalin Prabhavaka Jain Acharya Author(s): Saubhagyamuni Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf View full book textPage 1
________________ साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ राजस्थान के मध्यकालीन प्रभावक जैन आचार्य -श्री सौभाग्य मुनि 'कुमुद' भारत में श्रमण एवं ब्राह्मण संस्कृति का उत्स ठेठ आदिम सभ्यता के विकास के साथ जुड़ा मिलता है। सांस्कृतिक उत्थान-पतन की हजारों घटनाओं का निर्वहन करते हुए भी जो संस्कृति अपने मूल्य टिका पाई उसका अन्तःसत्व कुछ ऐसी विशेषताएँ लिये अवश्य होता है जो उस संस्कृति को अमरता प्रदान करता है। श्रमण एवं ब्राह्मण संस्कृति के मूल्यों में जो सार्वभौमिकता के तत्व हैं, मानव की अन्तःचेतना की स्फुरणाओं एवं अपेक्षाओं को रूपायित करने की जो क्षमता है तथा जीवन को उच्च अर्थों में प्रेरित करने की प्रेरणा है वे ही ये तथा ऐसी जो विशेषताएँ हैं, ये ही वे गुण हैं जो इन महान संस्कृतियों को जन-जन के लिए लाभदायक और उपयोगी बनाते हैं। भारत एक विशाल राष्ट्र है जो कभी आर्यावर्त के नाम से भी पहचाना जाता था । व्यवस्था खान-पान, भाषा, रीति-रिवाज और परिवेश की दृष्टि से अनेक भागों में बंटा हुआ है। फिर भी यह एक राष्ट्र के रूप में जुड़ा रहा। इसका एक कारण इसके पास उदात्त सांस्कृतिक मूल्यों का होना भी है। कुछ वर्षों पहले भारत का जो हिस्सा राजपूताना कहलाता था, लगभग वह हिस्सा आज राजस्थान के नाम से पहचाना जाता है। भारत के अन्य भागों की तरह यहाँ भी श्रमण एवं ब्राह्मण संस्कृति जो कि भारतीय संस्कृति की दोनों अंगीभूत संस्कृतियाँ हैं, बहुत पहले से ही फलती-फूलती एवं विकसित होती रहीं। ___ जहां तक ब्राह्मण संस्कृति का प्रश्न है उसका विस्तार यहाँ श्रमण संस्कृति से भी अधिक व्यापक स्तर पर होता रहा । इसके प्रमाण यहाँ का विशाल वैदिक साहित्य, हजारों मंदिर एवं सैकड़ों तीर्थ हैं। वैदिक दर्शन की वे सभी धाराएँ तो देश के कोने-कोने में फैली हुई हैं। राजस्थान में भी पहुँची और विकसित हुईं। यही कारण है कि अन्य भागों की तरह यहाँ भी शुद्धाद्वैत, विशिष्टाद्वैत पुष्टि मार्ग, भागवती मार्ग के भक्त, नाथ, कबीर, दादू आदि पंथों के अनुयायी लगभग पूरे राजस्थान में पाये जाते हैं। 1. त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र-हेमचन्द्राचार्य राजस्थान के मध्यकालीन प्रभावक जैन आचार्य : सौभाग्य मुनि “कुमुद" | २११Page Navigation
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