Book Title: Rajasthan ke Madhyakalin Prabhavaka Jain Acharya Author(s): Saubhagyamuni Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf View full book textPage 3
________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ याकिनी महत्तरा आदि-आदि संत सती - रत्न हैं, जो इस युग के जैन जगत के दमकते हीरे और ज्योतिर्मय नक्षत्र थे I यहाँ मध्यकालीन आचार्य ही विवेच्य हैं । अतः प्राचीन युग के आचार्यों का विस्तृत परिचय नहीं दिया गया है । जिनेश्वर सूरी राजस्थान के महानतम आचार्यों में जिनेश्वर सूरि का नाम बहुत प्रख्यात है । ये खरतर गच्छ के आदि गुरु माने जाते हैं । मालवा की प्रसिद्ध नगरी धारा में लक्ष्मीपति श्रेष्ठि के भव्य भवन में एक बार आग लग गई । उससे उसके वैभव की बड़ी हानि हुई किन्तु उसे सर्वाधिक दुःख उन ज्ञाननिधिपूर्ण श्लोकों के नष्ट होने का हुआ, जो भवन की दीवारों पर अंकित थे। उन्हीं दिनों वहाँ दो ब्राह्मण भ्राता आये हुए थे । एक दिन पहले भी वे श्र ेष्ठी से मिले थे । जव दूसरे दिन पुनः मिले तो श्रेष्ठी ने अपना दुख उन्हें जताया । उन्होंने कहा - आप चिन्ता न करें । हम कल यहाँ आये थे तब श्लोक पढ़े थे, वे हमारी स्मृति में हैं । और उन्होंने सारे श्लोक पुनः अंकित करा दिये । इससे प्रभावित हो श्र ेष्ठी ने दोनों ब्राह्मणकुमारों को जैनेन्द्रीया भागवती दीक्षा के लिए प्रेरित किया और अपने गुरु वर्धमान सूरि के पास दीक्षित कराया । जिनेश्वर मुनि और बुद्धिसागर मुनि दोनों अद्भुत विद्वान सिद्ध हुए । जिनेश्वर सूरि को आचार्य पद प्रदान किया गया । इन्होंने गुजरात तक विहार किया । दुर्लभराज ने इन्हें खरतर की उपाधि से मण्डित किया । कथा कोष, लीलावती, वीर चरित्र आदि अनेक ग्रन्थों के आप रचयिता हैं । हरिभद्र के अष्टकों पर प्रसिद्ध टीका भी आपने लिखी । यह कार्य जालोर में सम्पन्न हुआ ।" इसी शती के प्रभावक आचार्यों में प्रभाचन्द्र बूंद गणी आदि के भी नाम उल्लेखनीय हैं । किन्तु विशेष परिचय नहीं मिल सका। आ० हरिषेण भी इस शती के महान आचार्य हैं। इन्होंने अपनी प्रसिद्ध कृति धम्म परीक्षा में मेवाड़ की बड़ी प्रशंसा की है । धम्म परीक्षा ग्रन्थ उपलब्ध है । वारहवीं शती के प्रभावक जैन आचार्यों में जिनवल्लभसूरि, विमलकीर्ति, लक्ष्मीगणी आदि प्रमुख हैं। जिनवल्लभसूरि को चित्तौड़ में आचार्य पद प्रदान किया गया। इनकी १७ रचनाएँ उपलब्ध हैं | 2 लक्ष्मीगणी ने सुपार्श्वनाथ चरित्र की रचना मांडलगढ़ में की, यह उक्त चरित्र से प्रसिद्ध है । गुणभद्र मुनि राजस्थान के एक और विद्वान संत हो गये हैं । इनके द्वारा रचित ६३ श्लोक की एक प्रशस्ति विजोलिया के जैन मन्दिर में लगी हुई है। इसमें मन्दिर निर्माताओं के उपरान्त अजमेर के चौहानों और सांभर के राजाओं की वंशावली दी गई है। इनका समय तेरहवीं शती का बनता है । 2. गुर्वावली राजस्थान के मध्यकालीन प्रभावक जैन आचार्य : सौभाग्य मुनि " कुमुद” | २१३ 1. खरतर गच्छ बृहद् गुर्वावली पत्रांक-- 9 www.Page Navigation
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