Book Title: Puratattva Mimansa
Author(s): Jinvijay
Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf

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Page 15
________________ PAARAamariKAAwnP.AAAAAAJNANA M AMANANANNADAARADAIASABAATAARAARIALADAKI33- 2 oACano ORY आचार्यप्रवी सभाचार्यप्रवभिः श्राआनन्दग्रन्थश्राआनन्द .COM OMGN Pravemaramrnvironmenvir १७२ इतिहास और संस्कृति वर्णन से विदित होगा कि लिपि विषयक शोध में मिस्टर प्रिसेंप ने बहुत काम किया है । एशियाटिक सोसाइटी की ओर से प्रकाशित "सैन्टीनरी रिव्यू' नामक पुस्तक में "एन्श्यएट् इण्डिअन अलफावेट" शीर्षक लेख के आरम्भ में इस विषय पर डॉ० हानली लिखते हैं कि 'सोसाइटी का प्राचीन शिलालेखों को पढ़ने और उनका भाषान्तर करने का अत्युपयोगी कार्य १८३४ ई० से १८३६ ई० तक चला। इस कार्य के साथ सोसाइटी के तत्कालीन सेक्रेटरी, मि० प्रिसेंप का नाम, सदा के लिए संलग्न रहेगा; क्योंकि भारत विषयक प्राचीन लेखनकला, भाषा और इतिहास सम्बन्धी हमारे अर्वाचीन ज्ञान की आधारभूत इतनी बड़ी शोध-खोज इसी एक व्यक्ति के पुरुषार्थ से इतने थोड़े समय में हो सकी।" प्रिसेंप के बाद लगभग तीस वर्ष तक पुरातत्त्व-संशोधन का सूत्र जेम्स फग्र्युसन मॉर्खम किट्टो, एडवर्ड टॉमस अलेक्जेण्डर कनिङ्गम, वाल्टर इलियट, मेडोज टेलर, स्टीवेन्सन, डॉ. भाऊदाजी आदि के हाथों में रहा। इनमें से पहले चार विद्वानों ने उत्तर हिन्दुस्तान में, इलियट साहब ने दक्षिण भारत में और पिछले तीन विद्वानों ने पश्चिमी भारत में काम किया। फग्र्युसन साहब ने पुरातन वास्तु विद्या का ज्ञान प्राप्त करने में बड़ा परिश्रम किया और उन्होंने इस विषय पर अनेक ग्रन्थ लिखे । इस विषय का उनका अभ्यास इतना बढ़ा चढ़ा था किसी भी इमारत को केवल देखकर वे सहज ही में उसका समय निश्चित कर देते थे। मेजर किट्टो बहुत विद्वान तो नहीं थे परन्तु उनकी शोधक बुद्धि बहुत तीक्ष्ण थी। जहाँ अन्य अनेक विद्वानों को कुछ जान न पड़ता था वहाँ वे अपनी गिद्ध जैसी पैनी दृष्टि से कितनी ही बातें खोज निकालते थे। चित्रकला में वे बहत निपुण थे । कितने ही स्थानों के चित्र उन्होंने अपने हाथ से बनाये थे और प्रकाशित किये थे। उनकी शिल्पकला विषयक इस गम्भीर कुशलता को देखकर सरकार ने उनको बनारस के संस्कृत कॉलेज का भवन बनवाने का काम सौंपा । इस कार्य में उन्होंने बहत परिश्रम किया जिससे उनका स्वास्थ्य गिर गया और अन्त में इंग्लैण्ड जाकर वे स्वर्गस्थ हए । टॉमस साहब ने अपना विशेष ध्यान सिवकों और शिलालेखों पर दिया। उन्होंने अत्यन्त परिश्रम करके ई० स० पूर्व २४६ से १५५४ ई० तक लगभग १८०० वर्षों के प्राचीन इतिहास की शोध की। जनरल कनिङ्गम ने प्रिसेंप का अवशिष्ट कार्य हाथ में लिया। उन्होंने ब्राह्मी तथा खरोष्ठी लिपियों का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया । इलियट साहब ने कर्नल मेकेजी के संग्रह का संशोधन और संवर्द्धन किया । दक्षिण के चालुक्य वंश का विस्तृत ज्ञान सर्व प्रथम उन्हींने लोगों के सामने प्रस्तुत किया। टेलर साहब ने भारत की मूर्ति निर्माण विद्या का अध्ययन किया और स्टीवेन्सन ने सिक्कों की शोध-खोज की। पुरातत्त्व-संशोधन के कार्य में प्रवीणता प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय विद्वान् डॉक्टर माउदाजी थे। उन्होंने अनेक शिलालेखों को पढ़ा और भारत के प्राचीन इतिहास के ज्ञान में खूब वृद्धि की । इस विषय में दूसरे नामांकित भारतीय विद्वान् काठियावाड़ निवासी पण्डित भगवानलाल इन्द्रजी का नाम उल्लेखनीय है, जिन्होंने पश्चिम भारत के इतिहास में अमूल्य वृद्धि की है। उन्होंने अनेक शिलालेखों और ताम्रपत्रों को पढ़ा है परन्तु उनके कार्य का सच्चा स्मारक तो उनके द्वारा उड़ीसा के खण्ड गिरि-उदयगिरि वाली हाथी गुफा में सम्राट खारवेल के लेखों का शुद्ध रूप से पढा जाना ही है। बंगाल के विद्वान डॉ० राजेन्द्रलाल मित्र का नाम भी इस विषय में विशेष रूप से उल्लेख करने योग्य है । उन्होंने नेपाल के साहित्य का विशिष्ट ज्ञान प्राप्त किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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