Book Title: Puratattva Mimansa
Author(s): Jinvijay
Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ १७६ इतिहास और संस्कृति इस प्रकार देश में और विदेश में व्यक्तियों और संस्थाओं द्वारा किये गये पुरातत्त्वानुसंधान से हमारी प्राचीन संस्कृति के बहुत से अज्ञात अध्याय सामने आये हैं। शिशूनाग, नन्द, मौर्य, ग्रीक, शातकर्णी, शक, पार्थीअन्, कुशाण, क्षत्रप, आभीर, गुप्त, हण, योधेय, वैस, लिच्छवी, परिव्राजक, वाकाटक, मौखरी, मैत्रक, गुहिल, चावड़ा, चालुक्य, प्रतिहार, परमार, चाहमान, राष्ट्रकूट, कच्छवाह, तोमर, कलचुरी, त्रेकुटक, चन्देला, यादव, गुर्जर, मिहिर, पाल, सेन, पल्लव, चोल, कदम्ब, शिलार, सेन्द्रक, काकतीय, नाग, निकुम्भ, वाण, मत्स्य, शालंकायन, शैल, भषक आदि अनेक प्राचीन राजवंशों का एक विस्तृत इतिहास जिसके विषय में हमें एक अक्षर भी ज्ञात नहीं था, इन्हीं विद्वानों के प्रयत्नों से प्राप्त हुआ है। अनेक जातियों, धर्मों, सम्प्रदायों धर्माचार्यों, विद्वानों, धनिकों, दानियों और वीर पुरुषों के वृत्तान्तों का परिचय मिला है और असंख्य प्राचीन नगरों, मन्दिरों, स्तूपों और जलाशयों आदि की मूल बातें विदित हुई हैं । सौ वर्ष पूर्व हमें इनमें से किसी वस्तु के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। उपर्युक्त विवरण से स्पष्टतया प्रतीत होता है कि पुरातत्त्वसंशोधन का कितना अधिक महत्व है । यह देश के इतिहास को शुद्ध और सम्पूर्ण बनाता है । इससे प्रजा के भूतकाल का यथार्थ ज्ञान प्राप्त होता है और भविष्यत् में हमें किस मार्ग का अवलम्बन करना है, इसका सच्चा मार्गदर्शन होता है। विद्वानों का कहना है कि भारतवर्ष में जो पुरातत्त्व सम्बन्धी कार्य अब तक हुआ है वह देश की विशालता एव विविधता को देखते हुए केवल बाल-बोध पुस्तक के प्रथम पृष्ठ का उद्घाटन मात्र हुआ है । उनके ऐसा कहने में कोई अत्युक्ति नहीं है । क्योंकि इस देश में अभी तक इतनी अधिक वस्तुएँ छिपी, गड़ी और दबी हई पड़ी हैं कि सैकड़ों विद्वान कितनी ही शताब्दियों तक परिश्रम करके ही उनको प्रकाश में ला सकते हैं। भारत के राष्ट्रीय जीवन के नवीन इतिहास सम्बन्धी कोरी पुस्तक में "श्री गणेशाय नमः" लिखने का विशिष्ट श्रेय गुजरात ही को प्राप्त होगा, ऐसा ईश्वरीय संकेत दिखाई पड़ता है। अतः हमारी ऐसी भावना होनी चाहिए कि राष्ट्रीय इतिहास के प्रत्येक अध्याय के आदि में गुजरात का प्रथम उल्लेख हो और तदनुसार ही हमको प्रगति करनी चाहिए, और ऐसे ही किसी अज्ञात संकेत के आधार पर हमारे राष्ट्रीय शिक्षण मन्दिर के साथ पुरातत्त्व मन्दिर की भी स्थापना हुई है। इसको सफल बनाने का लक्ष्य हमारे प्रत्येक विद्यार्थी में प्रभु उत्पन्न करें इमी अभिलाषा के साथ में अपना व्याख्यान समाप्त करता हूँ। पुनश्च कोई ३५ वर्ष पूर्व, मैंने अपना यह व्याख्यान लिखा था और उस समय भारत के पुरातात्त्विक संशोधन के इतिहास के बारे में जो खास-खास बातें जानने जैसी थीं, उनका संक्षेप में-केवल दिग्दर्शन रूप वर्णनमात्र इस व्याख्यान में किया था। गुजरात विद्यापीठ के, महाविद्यालय (कालेज विभाग) में अध्ययन करने वाले स्नातकों को, अपने देश के प्राचीन इतिहास की साधन सामग्री का अन्वेषण और अनुसन्धान कैसे किया गया- इसका कुछ आभास मात्र कराने का वह प्रयत्न था। विदेशी शासन की पराधीनता से भारत को मुक्त कराने का महात्मा गांधीजी ने जो दृढ़ संकल्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23