Book Title: Pundarik Charitram
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Mohanlal Girdharlal Shah Bhavnagar
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प्रसर
तां कन्यां लक्षणैर्धन्यां प्रभुः प्रेक्ष्य विचार्य च। स्मित्वा ययाचे तं भूपं भरतायाऽऽत्मसूनवे ॥ ७७॥ 8 चरित्रम् अथ देवयशाभूपः प्रणिपत्य जगत्पतिम् । स्वकरी कोरकीकृत्ये जगाद जगतां वरः ॥ ७८॥ 8 जगदीश ! क्व ते पुत्रो देवेभ्योऽधिककान्तिमान् ? । मम त्वत्पदासस्य मुग्धरूपा क्व बालिका? ॥ ७९ किन्तु प्रभो! मे तनया सवयास्तनयेन ते। अतः प्रसादमाधाय प्रमाणय मनोरथम् ॥ ८०॥ इति प्रतिश्रुतेऽनेन भरतं स्वसुतं प्रभुः। व्यवायत् सुविधिना कुमारीमृषभश्रियम् ॥ ८१ ॥ कुमारं भरतं मुग्धं क्रीडारम्भरतं:तया। वन-वाप्यादिषु प्रेक्ष्य कुतुकी स्वजनोऽभवत् ॥ ८२॥ कटाक्षैर्वचनैः पाणिक्षेपैरालिङ्गनैस्तयोः। स्नेहेन यौवनेनोचैत्रपा-मौग्ध्ये तनूकृते ॥ ८३ ॥ 8 बाल्यसेतुं व्यतिक्रम्य यौवनाम्भोधिमध्यगौ। ती दम्पती नवं सौख्यपीयूषं पपतुर्मिथः ॥ ८४ ॥
भरतपुत्रपुण्डरीकोत्पत्ति:18 इत्थं प्रयाति समये पद्मस्वप्नेन सूचितम् । सूनुमृषभसेनाख्यमृषभश्रीरसूत सा ॥ ८५॥ 8 पुण्डरीकगर्भस्वप्नात् पुण्डरीकाङ्गगन्धतः । पुण्डरीक इति जनैः कृताख्यो ववृधे शिशुः ॥ ८६ ॥ ४ श्रीऋषभविचिन्तनम्18 इतश्च जगतां नाथो भवपाथोनिधिं स्वयम् । प्रसरन्मोहतरङ्ग हतरङ्गं व्यचिन्तयत् ॥८७॥ ४. हहो ! आत्मन् ! विहायांऽही मोक्षं चेद् गन्तुमिच्छसि । संसारे ध्वस्तसंसारे किं लुब्धोऽसि विचेतनः ॥८८08
आत्मा आह- अन्येऽपि स्थिताः सन्ति। . १ कोरकीकृत्य संपुटीकृत्य । २ प्रमाणय प्रमाणं कुरु। ३ अंहः पापम् । ४ समीचीनः सारः ध्वस्तो यस्मिन् ।
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