Book Title: Pt Todarmalji aur Gommatasara
Author(s): Narendra Bhisikar
Publisher: Z_Acharya_Shantisagar_Janma_Shatabdi_Mahotsav_Smruti_Granth_012022.pdf

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Page 9
________________ १६२ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ स्थान, (५) छह लेश्याओं का कर्म (कार्य) का उदाहरण वर्णन, (६) छह लेश्याओं का लक्षण, (७) गति आयु बन्ध-अबन्ध रूप छह लेश्याओं के छब्बीस अंशों का वर्णन, (८) भाव लेश्याओं के चारों गति सम्बन्धी स्वामिओं का वर्णन, (९) द्रव्य लेश्या और भाव लेश्याओं के साधन (कारण) का वर्णन, (१०) संख्या अधिकार में छह लेश्यावाले जीवों की संख्या का वर्णन, (११) स्थान अधिकार में स्वस्थान-समुद्घात उपपादस्थान का वर्णन (१२) स्पर्शन अधिकार में तीन काल सम्बन्धी क्षेत्र का वर्णन, (प्रसंगवश मेरु पर्वत से लेकर सहस्रार स्वर्ग पर्यंत सर्वत्र पवन के सद्भाव का वर्णन ), (१३) काल अधिकार में छह लेश्याओं का वासना काल का वर्णन, (१४) अन्तर अधिकार में छह लेश्याओं का जघन्य उत्कृष्ट विरहकाल का वर्णन, (१५) भाव अधिकार में लेश्याओं के औदयिक भाव का वर्णन, (१६) अल्पबहुत्व अधिकार में लेश्या धारी जीवों की संख्या का अल्पबहुत्व वर्णन है। इस प्रकार लेश्या का वर्णन कर लेश्यारहित जीवों का वर्णन किया है। १६ भव्य मार्गणा-अधिकार--भव्य अभव्य के स्वरूप तथा उनकी संख्या का वर्णन है । प्रसंगवश पंच परावर्तन का वर्णन किया है । १७ सम्यक्त्व मार्गणा-अधिकार-सम्यक्त्व के स्वरूप का वर्णन-सराग, वीतराग भेद से सम्यक्त्व का वर्णन, षद्रव्य नव पदार्थो के स्वरूप का वर्णन, रुपी-अरुपी अजीव द्रव्यों का वर्णन, धर्मादिक अमूर्तद्रव्यों के अस्तित्व की सिद्धि काल द्रव्य का वर्तना हेतुत्व लक्षण का दृष्टांत पूर्वक वर्णन है। मुख्य काल के अस्तित्व की सिद्धि समय आवली आदि व्यवहार काल का वर्णन, व्यवहार काल के निमित्त का वर्णन है। स्थिति अधिकार में सर्व द्रव्य अपने अपने पर्यायों के समुदायरूप अवस्थित है। जीवादिक द्रव्यों का अवगाह क्षेत्र वर्णन है । प्रसंगवश समुद्घातों का वर्णन है । जीव के संकोच विस्तार शक्ति का वर्णन है । जीवादिक द्रव्यों की तथा उनके प्रदेशों की संख्या का वर्णन है। द्रव्यों के चल-अचल प्रदेशों का वर्णन है । अणुवर्गणा आदि तेईस पुद्गल वर्गणाओं का वर्णन है। आहारादि बर्गणाओं के कार्य का वर्णन है । महास्कंध वर्गणा का वर्णन है । पुद्गल द्रव्य के स्थूल-स्थूल स्थूल आदि छह भदों का वर्णन है। धर्मादि द्रव्यों के उपकार का वर्णन है। नवपदार्थों का वर्णन है। पापजीवों का वर्णन है । चौदह गुणस्थानों में जीवों की संख्या प्रमाण का वर्णन है । नरकादि गति के जीव यथा संभव मिथ्यात्व आदि गुणस्थानों में कितने रहते है उनका वर्णन है। द्रव्य-पुण्य-पाप का वर्णन है। सम्यक्त्व के भदों का वर्णन है। क्षायिक सम्यक्त्व के होने का- कितने भव में क्षायिक सम्यक्त्वी को मुक्ति होने के नियम का वर्णन है। सम्यक्त्व के पांच लब्धि का वर्णन है। १८ संज्ञी मार्गणा अधिकार में संज्ञी-असंज्ञी जीवों का उनकी संख्या प्रमाण का वर्णन है । १९ आहार मार्गणा अधिकार-में आहारक अनाहारक जीवों का वर्णन है। सात समुद्घात का वर्णन है। २० उपयोग अधिकार में साकार अनाकार उपयोग का वर्णन है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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