Book Title: Pt Todarmalji aur Gommatasara
Author(s): Narendra Bhisikar
Publisher: Z_Acharya_Shantisagar_Janma_Shatabdi_Mahotsav_Smruti_Granth_012022.pdf

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Page 8
________________ १६१ पं. टोडरमलजी और गोम्मटसार ९ योगमार्गणा-अधिकार-में योग का लक्षण बतला कर मन-वचन-काय रूप तीन योगों का तथा उनके प्रभेदों का वर्णन किया है। सत्य-असत्य-उभय-अनुभय भेद से मनोयोग और वचन-योग चार चार प्रकार का है। सत्य वचन के दश भेदों का तथा आमंत्रणी-आज्ञापिनी आदि अनुभय वचनों का वर्णन किया है। केवली को मन-वचन-योग संभवने का वर्णन है। काययोग के ७ भदों का वर्णन है। मिश्रयोग होने का विधान, उनका काल इनका वर्णन है। युगपत् योगों की प्रवृत्ति होने का विधान वर्णन किया है। १० वेदमार्गणा-अधिकार-भाव-द्रव्य भेद से वेद दो प्रकार का है। उनमें कहीं पर समानता तथा असमानता पाई जाती है। वेदों के कारण को कहकर ब्रह्मचर्य अंगीकार करने का वर्णन किया है। तीनों वेदों का निरुक्ति अर्थ बतला कर अपगत वेदी जीवों का वर्णन है । ११ कषाय मार्गणा-अधिकार-अनंतानुबन्धी आदि कषायों का सम्यक्त्व आदि जीव के गुणों का घात करने का वर्णन किया है। कषाय के शक्ति अपेक्षा से ४ भेद, लेश्या अपेक्षा १४ भेद, तथा आयुबन्ध-अबन्ध अपेक्षा २० भेदों का वर्णन है । १२ ज्ञान मार्गणा अधिकार में मतिज्ञान आदि पांच सम्यग्ज्ञानों का, तीन मिथ्याज्ञानों का तथा मिश्रज्ञानों का वर्णन है । मतिज्ञान में अवग्रहादि भेदोंका, वर्णन है। व्यंजनावग्रह चक्षु और मन के बिना चार इंद्रियों से होता है, तथा उसमें ईहादिक ज्ञान नहीं होते हैं। बहु-बहुविध आदि १२ भेदों से मतिज्ञान के ३३६ भेदों का वर्णन किया है । भाव श्रुतज्ञान में पर्याय-पर्यायसमास आदि भेद से २० प्रकार पाये जाते हैं। जघन्य ज्ञान के अविभाग प्रतिच्छेदों का प्रमाण बतलाकर उनमें क्रम से षट्स्थानपतित वृद्धि का क्रम बतलाया है। द्रव्यश्रुतज्ञान में द्वादशांग पदों का, प्रकीर्णकों के अक्षरों की संख्या का वर्णन है । प्रसंगवश तीर्थंकरों की दिव्यध्वनि होने के विधान का, तथा अंतिम तीर्थंकर वर्धमान स्वामि के समय ३६३ कुवादी निर्माण हुये उन मिथ्या मतों का वर्णन करके अनेकांत सप्तभंगी का वर्णन किया है। १३ संयम मार्गणा-अधिकार में संयम के भेदों का वर्णन कर के ग्यारह प्रतिमा, संयम के २८ भेद इनका वर्णन है। १४ दर्शन मार्गणा-अधिकार में चक्षुदर्शन आदि चार प्रकार के दर्शनों का वर्णन करके शक्ति चक्षुदर्शनी, व्यक्त चक्षुर्दर्शनी, और अवधि केवल अचक्षुर्दर्शनी जीवों की संख्याप्रमाण का वर्णन है । १५ लेश्या मार्गणा-अधिकार में भाव लेश्या और द्रव्य लेश्या का वर्णन है। लेश्याओं का वर्णन १६ अधिकार में किया है। (१) छह लेश्याओं का नाम, (२) छह द्रव्य लेश्याओं के वर्ण का कारण तथा दृष्टांत, (३) कषायों के उदयस्थान सहित संक्लेश-विशुद्धि स्थान, (४) स्वस्थान परस्थान संक्रमणरूप संक्लेश विशुद्धि २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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