Book Title: Pt Todarmalji aur Gommatasara
Author(s): Narendra Bhisikar
Publisher: Z_Acharya_Shantisagar_Janma_Shatabdi_Mahotsav_Smruti_Granth_012022.pdf

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Page 10
________________ पं. टोडरमलजी और गोम्मटसार १६३ २१ ओघादेश योगप्ररूपणा-अधिकार में गति आदि मार्गणाओं में गुणस्थान और जीवसमासों का वर्णन है। २२ आलाप अधिकार में सामान्य-पर्याप्त-अपर्याप्त आलापों का वर्णन है । गुणस्थान- मार्गणा स्थानों में २० प्ररुपणाओं का वर्णन है। इस प्रकार ‘जीवकांड ' नामक महाधिकार में बाईस प्ररूपणा अधिकारों का वर्णन किया है । २. कर्मकांड नामक महाधिकार इस में नव अधिकार हैं। १ प्रकृति समुत्कीर्तन अधिकार में जीव-कर्म के सम्बन्ध का, उनके अस्तित्व का दृष्टांत पूर्वक वर्णन है। कर्म के बन्ध उदय सत्त्व प्रकृतियों के प्रमाण का वर्णन है । ज्ञानावरणादि आठ मूल प्रकृतियों का, घाति-अघाति भेदों का, उनके कार्य का दृष्टांतपूर्वक वर्णन है । प्रसंग वश अभव्य को केवल ज्ञान का सद्भाव सम्बन्धी प्रश्नोत्तर रूप से वर्णन है। अनन्तानुबन्धी आदि कषायों का कार्य व वासना काल इनका वर्णन है। कर्म प्रकृतियों में पुद्गलविपाकी भवविपाकी क्षेत्रविपाकी जीवविपाकी प्रकृतियों का वर्णन है। नामादि चार निक्षेपों का वर्णन है। २ बन्ध-उदय-सत्त्व-अधिकार--बन्ध के प्रकृति-स्थिति-अनुभाग-प्रदेश भेदों का वर्णन है। उनके उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट-जघन्य-अजघन्य अंशों का, तथा उनके सादि-अनादि-ध्रुव-अध्रुव बन्ध का वर्णन है। किस गुणस्थान में किस प्रकृति का बन्ध-नियम है उसका वर्णन है। तीर्थंकर प्रकृति बन्धने की विशेषता का वर्णन है। किस गुणस्थान में किस प्रकृति की बन्धव्युच्छित्ति होती, किस का बन्ध, किसका अबंध होता इसका वर्णन है। द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नयविवक्षा से व्युच्छित्ति का स्वरूप वर्णन है। उत्कृष्ट स्थिति बन्ध संज्ञी पंञ्चेद्रिय पर्याप्तक को ही होता है । मोहादि कर्म के आबाधाकाल का तथा आयुकर्म के आबाधा-काल का वर्णन है। देव-नारकी-कर्म भूमि-भोगभूमि-जीवों को आयु बन्ध होने के समय का वर्णन है। अनुभागबंध के वर्णन में घातिया कर्मों के लता-दारु-अस्थि-शैलभागरूप अनुभाग का तथा अघातिकर्मों की प्रशस्त प्रकृतियों का गुड-खंड-शर्करा-अमृत रूप अनुभाग का, तथा अप्रशस्त प्रकृतियों का निंब-कांजीर-विष-हालाहल रूप अनुभाग का वर्णन है। प्रदेशबंध के वर्णन में एक जीव को प्रत्येक समय में कितने कर्मपरमाणु बद्ध होते है उनका वर्णन है। सिद्धराशि के अनन्तवां भागप्रमाण अथवा अभव्य राशि से अनन्तगुणा प्रमाण समयप्रबद्ध का प्रमाण है। घातिकर्मों में देशघाति-सर्वघाति विभाग का वर्णन है। अंतराय कर्मप्रकृतियों में सर्वघातिपना नहीं है। प्रसंगवश योगस्थान श्रेणी के असंख्यातवा भागमात्र है उनका वर्णन है। उनसे असंख्यात लोक गुणा अनुभाग बन्धाध्यवसायस्थान है उनका वर्णन है । उदय का वर्णन करते हुये किस गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का उदय, उदयव्युच्छित्ति, अनुदय होता है उनका वर्णन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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