Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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देकर इस संगोष्ठी की अध्यक्षता करने की कृपा की है । उनको हम दर्शनशास्त्र के एक स्तम्भ के रूप में जानते हैं । सम्पूर्ण क्रान्ति की विचारधारा को मण्डित करने में भी उनका जो योगदान रहा है, उससे भी हम परिचित हैं । अपने चिन्तनपूर्ण और विचारोत्तेजक (Thought-Provoking) अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने जैनधर्म की जिन विशिष्टताओं का जिक्र किया है, उससे हम लाभान्वित हुए हैं। अपने भाषण में उन्होंने सादगी पर जोर दिया है। आप सभी जानते हैं कि वे सादगी के स्वयं प्रतीक हैं। संस्थान की संगठनात्मक एवं प्रबन्धात्मक खामियों को दूर करने के लिए उन्होंने जो अनुरोध मुझसे किया है, उसे हम उनका आदेश मानकर पूरा करने का प्रयास करेंगे। इस संगोष्ठी में आने के लिए मैंने जब शिक्षा - सचिव से अनुमति माँगी थी, तब उन्होंने सहर्ष यहाँ आने की अनुमति प्रदान की । इस संगोष्ठी में जो परिचर्चाएँ (Deliberations) हुई हैं; उनके सम्बन्ध में मैं निश्चित रूप से उन्हें अवगत कराऊँगा । मैं डा. रामजी सिंह के प्रति पुनः आभार व्यक्त करना चाहूँगा ।
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मैं पद्मश्री श्री के. एन. प्रसाद के प्रति भी आभार प्रकट करता हूँ, जिन्होंने इस संगोष्ठी के उद्घाटन की कृपा की है। अपने विद्वत्तापूर्ण उद्घाटन भाषण में उन्होंने अनादिकाल से मनुष्य की सभ्यता के विकास का जो इतिहास आपके सामने रखा और वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में धर्म की भूमिका पर जो प्रकाश डाला, साथ ही गलत अवधारणाओं और मान्यताओं पर जो कठोर प्रहार किया, उसका गहरा असर निश्चित रूप से आप पर हुआ होगा । हम उनके प्रति अपना हार्दिक आभार प्रकट करते हैं ।
डा. बी. के. लाल साहब दर्शनशास्त्र के सुविख्यात विद्वान् हैं । उन्होंने जैनधर्म के गूढ़ तत्त्वों को जिस प्रकार अपने ज्ञानवर्द्धक अभिभाषण (Illuminating Address) में हमारे सामने रखा है, हम सभी उससे गम्भीर रूप से प्रभावित हुए हैं। जिस रूप में जैनधर्म की मान्यताओं को उन्होंने सामने रखा, उससे तो यही लगता है कि आज के अनेक आधुनिक विचार जैसे जनतन्त्र, धार्मिक सहिष्णुता दूसरे अर्थ में धर्मनिरपेक्षता, मानवता आदि जैसे सिद्धान्त जैनधर्म से ही निकलते हैं। हम उनके प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं ।
इस संस्थान के कर्मचेता निदेशक डा. युगलकिशोर मिश्र को भी धन्यवाद देना चाहूँगा । यद्यपि आज का आयोजन तो उन्हीं का आयोजन है, परन्तु इस संगोष्ठी के आयोजन का उन्होंने जो बृहत्तर प्रयत्न किया है, हम उसे भूल नहीं सकते। उनके प्रति भी हम हार्दिक आभार प्रकट करते हैं ।
इस संगोष्ठी में देश के मूर्धन्य चिन्तक और विचारक, जो जैनधर्म और जैनशास्त्र में अपनी विशेषज्ञता रखते हैं, भाग ले रहे हैं। मैं आप सभी लोगा को हृदय से धन्यवाद
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