Book Title: Priyankarnrupkatha
Author(s): Hiralal R Kapadia
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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नं. १५७
प्रस्तावना
"स्तवस्तव जिनैकोऽपि, तनोति सुरसम्पदम् । पुंसां नाथ ! 'प्रतिक्षिप्ता-तनो ! ऽतिसुरसं पदम् ॥१॥ गर्भ-जन्म-व्रत-ज्ञान-श्रेयःकल्याणकेश्वयम् । जिनश्चिनोतु भव्यानां, श्रेयः कल्याणकेष्वयम् ॥२॥" इयं प्रियङ्करनृपकथा सरसा सरला कोमला च कृतिः श्रीजिनसूरमुनीश्वराणामित्यनुमीयते एतत्कथाकारप्रणीतनिम्नलिखितपद्यत्रयपादप्रारम्भिकाक्षरप्रेक्षणात्"जिनभक्तः सदा भूयाः, नरेन्द्र ! त्वं प्रियङ्कर !
शरेषु प्रथमस्तेन, रक्षणीयाः प्रजाः सुखम् ॥ २२६॥" "जिनप्रणामो जिननाथपूजा, नमस्कृतेः संस्मरणं च दानम् । सूरीश्वराणां नतिपर्युपास्ती, रक्षा त्रसाणां दिनकृत्यमेतत् २४५" "जिणवर देव आराहीइ, नमीहि सहगुरु भत्ति। सूधो धम्म ज सेवीइ, रहीइ निरमल चित्ति ॥२८०।।" १ निरस्तकाम! । २ द्वितीयैकवचनम् । ३ सानुकूलं दैवम् ।
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